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Home›जैन समाचार›राष्ट्रसंत, सराकोद्धारक,आचार्य 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ की तिजारा में प्रभावना पूर्वक हुई चातुर्मास स्थापना

राष्ट्रसंत, सराकोद्धारक,आचार्य 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ की तिजारा में प्रभावना पूर्वक हुई चातुर्मास स्थापना

By पी.एम. जैन
July 17, 2019
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तिजारा। 15 जुलाई सोमवार की प्रातःकाल की शुभ बेला राजस्थान माटी की पुण्यधरा तिजारा नगर के लिये स्वर्ण दिवस के रूप में आयी। आज राष्ट्रसंत, सराकोद्धारक, शाकाहार प्रवर्तक, नवचेतना प्रदायक परम पूज्य आचार्य 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ का वर्षायोग तिजारा में स्थापन कराने का पुण्य सभी को मिल रहा था।
डॉ. सुनील संचय ललितपुर ने बताया कि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ससंघ की चातुर्मास स्थापना में देश के विभिन्न स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु तिजारा पहुंचे हुए थे।
चातुर्मास स्थापना कार्यक्रम का शुभारंभ तिजारा की नन्हीं-नन्हीं  बालिकाओं ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर किया। इस दौरान स्वागत भाषण श्री पवन जैन (वर्तमान अध्यक्ष) ने किया। मंच संचालन प्रतिष्ठाचार्य  श्री जयकुमार जैन जी ने किया, जिसके पश्चात् तिजारा समाज के भारी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने पूज्यश्री के श्रीचरणों में श्रीफल समर्पित कर वर्षायोग हेतु संकल्प लिया।
वर्षायोग के मुख्य कलश प्राप्त करने का सौभाग्य श्री सुशील कुमार, राकेश जैन आज़ाद नगर व उनके परिवार को मिला। इसके उपरांत 4 अन्य कलश गुरुभक्तों ने बोलियों के माध्यम से प्राप्त किये।
इस अवसर पर दिल्ली, आगरा, मेरठ, शामली, मुरैना, बुढ़ाना, शाहपुर, कासन, गुरुग्राम, द्वारिका, बैंगलोर, मुम्बई, इंदौर, सागर, मुम्बई, जहाजपुर आदि जगह से श्रेष्ठी जन पधारे थे। पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, अर्घ्य समर्पण, आरती आदि की बोलियाँ लगी।
तदनंतर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने कहा कि 12 में से 4 निकालने पर कितने बचे? इस प्रश्न पर प्रवचन शुरू करते हुए कहा कि 12 महीने में से 4 महीने निकालने पर 0 बचेंगे। यह सुनकर आप सोच रहे होंगे कि यह उत्तर तो गलत है, पर बात सही है। बारह महीने में से वर्षा ऋतु के चार महीने निकाल दें तो फिर फसल आदि कुछ नहीं होने से शून्य बचेगा। आप सभी इन दिनों में अपना मानस बनाएँ कि हम भी अधिक से अधिक त्याग की साधना करके इस वर्षायोग में नई जीवन शैली जीने का प्रयास करें। जीव-रक्षा की दृष्टि से यह वर्षायोग बहुत महत्वपूर्ण है। दिगंबर साधु, जीव रक्षा की दृष्टि से एक स्थान पर रहकर साधना किया करते हैं। इस वर्षायोग में आप सभी कुछ न कुछ परिवर्तन करें। सम्यग्ज्ञान का अर्जन करें। अपने अपने बच्चों को भी गुरुओं के पास ले जाएँ। सभी सहनशक्ति का विकास करें। अपने-अपने घरों को आदर्श घर बनाएँ।
अभी तक तो हम लोग स्वतंत्र थे, पर आज से दीपावली तक हम लोग बँध गए हैं। अब विशेष परिस्थिति को छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे। चारों दिशाओं में 10 किमी की सीमा विशेष परिस्थिति के लिए रखी है। इस प्रकार आचार्य श्री ने चातुर्मास का महत्व बताते हुए अपनी वाणी को विराम दिया।
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
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