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Home›जैन समाचार›दीर्घकाल से वैराग्य भाव को थामे मुनि श्री सुधीरसागर जी का श्रेष्ठ समाधिमरण

दीर्घकाल से वैराग्य भाव को थामे मुनि श्री सुधीरसागर जी का श्रेष्ठ समाधिमरण

By पी.एम. जैन
January 11, 2020
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उत्तरप्रदेश के ललितपुर शहर में देश के ख्यातनाम पण्डित श्री बाबूलाल जी जामदार व लक्खी देवी के सुपुत्र के रूप में दिनाक 31 दिसंबर सन 1946 में जन्म लिया। नाम पाया अशोक जामदार उच्च शिक्षा के लिए युवा अशोक का बड़ौत प्रवास हुआ,फिर एक आला अधिकारी के रूप में देश की राजधानी दिल्ली में निवास हुआ।
जिस वर्ष आपका जन्म हुआ उसी वर्ष दक्षिण भारत मे विद्याधर नाम के सूर्य समान ओजस्वी अति भव्य जीव का जन्म हुआ।जो *सन्त शिरोमणि आचार्य भगवन्त श्री विद्यासागर ऋषिराज* के रूप में जग विख्यात है।
जब 1969-70 में सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी भगवन्त अपने दीक्षा गुरु *महाकवि आचार्य श्री ज्ञानसागर जी* के संग विद्यमान थे तब *अशोक जामदार* भी उनके साथ दीक्षा के भाव सँजोये उनके साथ ही थे।
आचार्य भगवन्त श्री विद्यासागर जी को दीक्षाकाल से ही तप साधना व गहरी आध्यात्मिक प्रवत्ति ही रुचिकर थी अतः वे अशोक जामदार की योग्यता को जानकर कहा करते थे कि *तुम मुनि बनकर प्रवचन करना में तप साधना करूँगा,तुम्हारे प्रवचन से अच्छी धर्म प्रभावना होती रहेगी और मेरी तप साधना निर्बाध्य चलते रहेगी।*
लेकिन तत्कालीन संयोग ऐसा बैठा की अशोक जामदार दीक्षा नही ले सके।और फिर उच्च शिक्षा में व्यस्त हो गए जहाँ *उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सम्मान मिला* उसके बाद अपनी विलक्षण योग्यता से दिल्ली में आला अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे,गृहस्थ जीवन मे अपने बच्चों व सम्पूर्ण परिवार को भी धार्मिक संस्कारो से विभूषित रखा।
लेकिन जो वैराग्य भाव के बीज आचार्य श्री ज्ञानसागर जी व सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास अंकुरित हुए थे वे ही बीज अशोक जामदार जब गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियो से निवृत हुए तब दृढ़ प्रतिज्ञा के साथ पूर्ण पल्लवित होने लगे।
और सन 2018 में *वर्तमान के वर्धमान युवमहाऋषि श्री सुनीलसागर जी गुरूराज* के विशाल सन्त संघ के दर्शनार्थ उदयपुर पधारे तो आप उस पवित्र वीतरागी साधना को देखकर इतने भाव विभोर हो गए कि आचार्य श्री से दीक्षा की याचना करने लगे।
आचार्य भगवन्त ने कुछ दिन भव्यात्मा को परखकर 20 अप्रैल 2018 को उदयपुर नगरी में मुनि दीक्षा प्रदान की *और बन गए मुनि सुधीरसागर जी*
आचार्य श्री संघ की निश्रा में रहकर ही मुनि श्री सुधीरसागर जी ने भी 73 वर्ष की आयु में भी उदयपुर- गांधीनगर-गिरनार-सागवाड़ा तक कुल 2500 किमी पद विहार यात्रा की।
शरीर की स्थिति को भांपकर
दिनांक 22 दिसम्बर 2019 को आपने अपने आराध्य दीक्षा गुरु आचार्य श्री सुनीलसागर जी से नियम सल्लेखना ग्रहण की,आचार्य श्री सुनीलसागर जी ने  समाधिरत मुनि श्री सुधीरसागर जी कि सेवा-वैयावृत्ति हेतु संघ के चार मुनि भगवन्तों को नियुक्त किया,जो नियमित उनके समिप रहकर सेवा सम्भाल करते रहे साथ ही आचार्य श्री भी समय समय पर मुनि श्री को दिशा निर्देश ,आत्म स्थिरता व समाधिमरण के श्रेष्ठ लक्ष्य का सम्बोधन प्रदान करते रहे।
दिनांक 28 दिसम्बर से आपका सभी प्रकार के आहार का त्याग हुआ। भेद विज्ञान के सटीक बोध व आत्म ध्यान पूर्वक 31 दिसम्बर की प्रातः2 बजकर 45 मिनट पर अपने दीक्षा गुरु आचार्य श्री सुनीलसागर जी व संघस्थ साधु भगवन्तों की उपस्थिति में मुनि श्री सुधीरसागर जी का अतिउत्तम समाधिमरण हुआ।
पूरे दीक्षा काल मे आप गुरु आज्ञा शिरोधार्य व गुरु सबसे बड़ा भगवन्त इसी सूत्र के साथ अनुशासन प्रिय व उत्कृष्ट चर्या को धारण करते रहे और आप आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के प्रियाग्र शिष्य के रूप में सम्पूर्ण संघ में एक होनहार दक्ष मुनि माने जाते थे।
आपके इस पवित्र पूज्य जीवन का एक दुर्लभ संयोग था कि आपका जन्म 31 दिमसबर को प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में हुआ था और समाधि भी 31 दिसम्बर को ब्रह्ममुहूर्त में हुई।
*ऐसे अनेकानेक भव्य जीवो के तारणहार पूज्यपाद आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज के चरणों मे कोटिशः नमन*
*समाधिस्थ मुनि श्री सुधीरसागर जी के चरणों मे अन्नतोबार नमन*
*✍शब्दसुमन-शाह मधोक जैन चितरी✍*
*नमनकर्ता-श्री सुनीलसागर युवासंघ भारत*
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