जैन साहित्य का महत्त्व-👉प्रो. वीरसागर जैन, दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में 13 जनवरी 2019 विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर हमने भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से ‘जैन साहित्य का अवदान’ विषय पर एक विशेष परिसंवाद आयोजित किया, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय और श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ के वरिष्ठ आचार्य प्रो. मदनमोहन अग्रवाल, प्रो. इच्छाराम द्विवेदी, प्रो. जयकुमार उपाध्ये आदि अनेक विद्वानों ने जैन साहित्य के विषय में बहुत ही गूढ़-गम्भीर विचार व्यक्त किये | उन्होंने जैन साहित्य की व्यापकता, विविधता, सरसता आदि को भलीभांति रेखांकित करते हुए सभी को जैन साहित्य के अध्ययन की मार्मिक प्रेरणा प्रदान की, साथ ही उसे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भी सम्मलित करने की पुरजोर वकालात की | उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग किसी भी प्रकार के दुराग्रहवश जैन साहित्य को नहीं पढ़ते-पढ़ाते हैं, वे एकांगी हैं, क्योंकि जैन साहित्य तो सर्वोदय की भावना पर आधारित और शाश्वत जीवन-मूल्यों का प्रबल पक्षधर है, कथमपि संकीर्ण नहीं है; भावपक्ष ही नहीं, उसका कलापक्ष भी रमणीय है; इत्यादि |
इस अवसर पर वहाँ अनेक सामान्य नागरिक और पत्रकार भी उपस्थित हुए और उन्होंने मुझसे संक्षेप में सरलता से जैन साहित्य का महत्त्व बताने को कहा | वे अपने समाचार-पत्र या चैनल के माध्यम से देश की सामान्य जनता को समझाना चाहते थे कि आखिर जैन साहित्य का क्या महत्त्व है अथवा जैन साहित्य को पढना आखिर क्यों महत्त्वपूर्ण है | मैंने इस सन्दर्भ में उनको जो कुछ कहा, वह उन्हें बहुत लाभदायक/सन्तोषप्रद प्रतीत हुआ, अत: मैं उसे यहाँ सभी के लाभार्थ लिपिबद्ध कर रहा हूँ | आशा है कोई सुधी विद्वान् इन बिन्दुओं को ठीक से व्यवस्थित और विस्तृत करेगा, ताकि आधुनिक युग के सभी लोगों को जैन साहित्य का महत्त्व भलीभांति समझ में आ सके |
जैन साहित्य के महत्त्व को हम अति संक्षेप में निम्नलिखित दृष्टियों से सुगमतापूर्वक समझ सकते हैं | यथा –
1.परिमाण की दृष्टि से – जैन साहित्य परिमाण में बहुत अधिक पाया जाता है | इतना अधिक साहित्य अन्य किसी धर्म-सम्प्रदाय के पास नहीं है | बहुत अधिक नष्ट-भ्रष्ट हो जाने के बाद भी आज लगभग दसियों लाख जैन कृतियाँ विद्यमान हैं | जैन साहित्य की विशालता का अनुभव करने के लिए विश्व भर में, गली-गली में, मन्दिर-मन्दिर में व्याप्त जैन ग्रंथालयों की यात्रा करनी होगी तथा उसकी किंचित् झलक पाने के लिए जैनसाहित्य के इतिहास या कोशग्रन्थों को देखना होगा |
2.विविधता की दृष्टि से – जैन साहित्य विविधता की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है | तथा उसकी यह विविधता भी विविध प्रकार की है- विषयगत विविधता, विधागत विविधता, भाषागत विविधता आदि | जैन आचार्यों ने प्राय: प्रत्येक विषय पर और प्राय: प्रत्येक ही विधा में जैनग्रन्थों का निर्माण किया है | कुछ भी छूटा नहीं है | यहाँ तक कि उन्होंने अनेक नवीन विषयों और विधाओं का आविष्कार भी किया है | इस सन्दर्भ में मेरा अन्य लेख ‘जैन विद्या की व्यापकता’ पठनीय है |
3.जीवन-मूल्यों की दृष्टि से – जैन साहित्य जीवन-मूल्यों की दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है!उसमें अहिंसा, सत्य, संयम, तप, त्याग, क्षमा, सहिष्णुता आदि अनेक उच्च कोटि के जीवनमूल्यों का ऐसा अद्भुत उपदेश है कि कोई भी मानव सही अर्थों में महामानव बन सकता है | महामानव ही क्या, साक्षात् परमात्मा बन सकता है |
4.वैज्ञानिकता की दृष्टि से – जैन साहित्य साम्प्रदायिक संकीर्णता से बहुत ऊपर है और उसमें बड़ी वैज्ञानिकता भरी हुई है! उसके संदेश जाति, लिंग, क्षेत्र, भाषा आदि की संकीर्णताओं में नहीं बंधे हैं, अपितु तर्क-युक्ति की कसौटी पर एकदम खरे उतरते हैं और पाठक को सार्वजनिक, सार्वकालिक, सार्वभौमिक हित की शिक्षा देते हैं |यही कारण है कि आज आधुनिक विज्ञान भी जैन दर्शन के प्राय: समस्त आचार एवं विचार का समर्थन कर रहा है|
5.दार्शनिकता की दृष्टि से – जैन साहित्य उच्च कोटि के दार्शनिक विचारों, तर्क-वितर्कों से अत्यंत समृद्ध है | समन्तभद्र, अकलंक, विद्यानंद आदि अनेक जैन आचार्यों की दार्शनिक कृतियाँ विश्व-वाङ्मय में अपना अप्रतिम स्थान धारण करती हैं | जैन आचार्यों ने अपने दर्शन को सुव्यवस्थित करने के लिए न्यायशास्त्र का भी अद्भुत विकास किया है, जिस पर भी उनकी लगभग 400 स्वतंत्र कृतियाँ वर्तमान में उपलब्ध हैं |
6.ऐतिहासिक सन्दर्भों की दृष्टि से – ऐतिहासिक सन्दर्भों की दृष्टि से भी जैन साहित्य बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है, क्योंकि जैन ग्रन्थों की प्रशस्तियों में तत्कालीन घटनाओं, राजाओं, साहित्यकारों आदि का ऐसा दुर्लभ वर्णन मिलता है, जो आज बड़े-बड़े इतिहासकारों को भी आश्चर्यचकित कर देता है | चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अमोघवर्ष, अकबर, शाहजहाँ, जयसिंह, माधोसिंह आदि के विषय में अनेक अज्ञात रहस्य जैन ग्रन्थों में ही छुपे हुए हैं |
7.कला की दृष्टि से – जैन ग्रन्थों की अधिकांश पांडुलिपियाँ बहुत ही कलात्मक हैं | उनमें विविध भावों और विषयों को सुंदर-सुंदर चित्रों और सारगर्भित चार्टों के द्वारा ऐसा अलंकृत करके समझाया गया है कि सबका मन प्रसन्न कर देता है | हजारों वर्षों से अब तक उनकी स्याही फीकी भी नहीं पड़ी है | उनका लेखन भी बहुत ही कलात्मक है |
8.राष्ट्रीय भावना की दृष्टि से- जैन साहित्य धर्म-दर्शन-अध्यात्म आदि विषयों का प्रतिपादन करते हुए भी राष्ट्रिय भावना से ओतप्रोत है | उसमें पदे-पदे राष्ट्रिय हित की कामना व्यक्त हुई है | वह अपने पाठक को एक ऐसा महान राष्ट्रवादी बनाता है, जो सदा सम्पूर्ण राष्ट्र के सर्वतोन्मुखी कल्याण की कामना करता है | जैन साहित्य में एक स्थान पर तो यहाँ तक लिखा है कि यदि राष्ट्र पर विपत्ति आई हो और तुमसे उसका निवारण हो सकता हो तुम अपना मुनि पद छोड़कर भी उस विपत्ति को दूर करो | इससे ज्ञात होता है कि जैन धर्म कितना अधिक राष्ट्रवादी है |
9.पर्यावरण-विज्ञान की दृष्टि से – पर्यावरण-प्रदूषण आज का गम्भीर संकट है, किन्तु जैन साहित्य इस दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें कदम-कदम पर पर्यावरण-चेतना के मनोहर दर्शन होते हैं| वह पाठक को पर्यावरण के प्रति अत्यंत संवेदनशील बनाता है | उसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति को जीव बताकर इनकी रक्षा का मार्मिक उपदेश दिया गया है | पर्यावरण-विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हम सब जैन आचार-संहिता का पालन करते होते तो आज हमें पर्यावरण-प्रदूषण के इस गम्भीर संकट का सामना ही नहीं करना पड़ता |
10.मानवाधिकार की दृष्टि से- आजकल मानवाधिकारों की बहुत चर्चा चलती है | जैन साहित्य इस दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है, क्योंकि उसमें मानव मानव के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव न करके सभी को समान मानने की शिक्षा दी गई है | जैन साहित्य तो मानवाधिकार ही नहीं, प्राणीमात्र के अधिकारों की रक्षा का पक्षधर है |
11.योगविज्ञान की दृष्टि से – आजकल योगविज्ञान की भी बहुत चर्चा चलती है, जैन सहित्य इस दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है | जैन साहित्य में ध्यानयोग विषय पर स्वतंत्र रूप से ही लगभग 300 ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, जो कि इस विषय के अन्तरंग-बहिरंग सभी आयामों पर विशद प्रकाश डालते हैं |
12.अध्यात्मविद्या की दृष्टि से – ‘अध्यात्मविद्या विद्यानाम्’ अर्थात् विद्याओं में अध्यात्मविद्या सर्वोपरि है | जैनों का आध्यात्मिक साहित्य भी अनूठा ही है | आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार आदि आध्यात्मिक ग्रन्थों ने लाखों लोगों का जीवन बदल दिया है | जैन साहित्य अपने पाठक को सही अर्थों में ‘स्थितप्रज्ञ’, ‘अनासक्त योगी’ या ‘आध्यात्मिक सत्पुरुष’ बनाता है, जो कि सदा सर्वत्र जल में कमल की भांति निर्लिप्त रहने की अद्भुत कला सीख जाता है |
13.ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं की दृष्टि से- जैन साहित्य ज्ञान-विज्ञान का भंडार है| उसमें केवल धर्म-दर्शन-अध्यात्म ही नहीं है, अपितु अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, गणित, भूगोल, खगोल, ज्योतिष, आयुर्वेद, संगीत, न्याय, व्याकरण आदि जीवन के प्राय: सभी विषयों का विस्तृत प्रतिपादन हुआ है |
14.भाषा की दृष्टि से – भाषा की दृष्टि से भी जैन साहित्य का विशेष महत्त्व माना जाना चाहिए, क्योंकि वह संसार की लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध होता है | वहाँ किसी एक ही भाषा का कट्टर आग्रह नहीं है | जैनाचार्यों ने ‘सर्वभाषा सरस्वती’ की नीति पर चलकर जब जहाँ जिस भाषा में लोग समझ सकें, तब वहाँ उसी भाषा का प्रयोग कर लिया है | जैनाचार्यों की भाषा-नीति आज की भाषा-समस्या को जड़मूल से समाप्त करने में समर्थ है.
15.काव्यत्व की दृष्टि से – जैन साहित्य काव्यत्व की दृष्टि से भी अद्भुत है | वस्तुवर्णन, अभिव्यंजना, रस, छन्द, अलंकार, भाषा, शैली आदि सभी काव्य-प्रतिमानों की कसौटी पर वह अन्य किसी भी साहित्य से कमतर सिद्ध नहीं होता, अपितु बढ़कर ही सिद्ध होता है- ऐसा सभी समीक्षकों का कहना है |
इसप्रकार यहाँ संक्षेप में जैन साहित्य का महत्त्व बताने का प्रयास किया | यद्यपि यहाँ और भी अनेक बिन्दु प्रस्तुत किये जा सकते हैं और उक्त बिन्दुओं का भी कुछ और विस्तार किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है, परन्तु संक्षिप्तरुचि को संकेत ही पर्याप्त है- ऐसा समझकर विराम लेता हूँ|
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