सिरि भूवलय में प्राकृत गाथासूत्र
सिरि भूवलय में प्राकृत गाथासूत्र
इस प्रकार आचार्य परंपरा से ज्ञात हुए न्याय को मन से अवधारण करके पूर्व आचार्यों के आचार का अनुसरण करना रत्नत्रय का कारण है।
भगवान के द्वारा कहे हुए वचनों से युक्त भूवलय दोष रहित शुद्ध है, आगम में यह कहा है, उनके द्वारा कहा हुआ तत्त्वार्थ होता है
उपपाद और मारणांतिक समुद्घात में परिणत त्रस तथा लोकपूरण-समुद्घात को प्राप्त केवली का आश्रय करके सारा लोकही त्रसनाली है
(सनाली को जो तेरह राजु से कुछ कम ऊंचा बतलाया गया है), उस नाली का प्रमाण यहां तीन करोड़, इक्कीस लाख, बासठ हजार, दो सौ इकतालीस धनुष और एक धनुष के तीन भागों में से दो भाग अर्थात् 2/3 (दो बटा तीन) है। (त्रसनाली की ऊंचाई 32162241″,धनुष कम 13 राजु है।)
इस प्रकार त्रिरत्न-शुद्धि पूर्वक में मनुष्य श्रेष्ठ भूवलय को नमस्कार करके भव्य मनुष्यों के प्रदीप स्वरूप त्रिलोक भूवलय को कहता हूँ।