शाकाहार के लोकव्यापीकरण हेतु मानवीय वैज्ञानिक आधार
शाकाहार के लोकव्यापीकरण हेतु मानवीय वैज्ञानिक आधार-अजित जैन ‘जलज’ ककरवाहा
‘पृथ्वी पर जीवन की संभावनाएं बढ़ाने के लिए शाकाहारी भोजन अपनाने से बेहतर कोई विकल्प नहीं है।’ विश्व के सर्वकालिक महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का यह कथन आज के वैज्ञानिक युग का खरा सच है। सारे संसार में फैली क्रूरता को कम करने का सर्वोत्तम उपाय करुणा का प्रचार-प्रसार है। शाकाहार तो मात्र एक शुरुआत है, वस्तुतः इसे जीवदया से लेकर मानव मात्र के प्रति करुणा भाव तक व्यापक समझना और समझाना चाहिए।
धर्मग्रंथों में अहिंसा के उद्धरण असंख्य एवं जगजाहिर हैं अतरू इनके स्थान पर आधुनिक विज्ञान के तथ्यात्मक नवीनतम प्रमाणों के माध्यम से अहिंसक आहार की समीक्षा करना अधिक समसामयिक रहेगा।
1. विश्व व्यापी मांसाहार – वर्ष 2010 में विश्व की आबादी 6.7 अरब थी, उसमें से 4.7 अरब लोग माँसाहारी थे। पूरे विश्व में 20 प्रतिशत आबादी ही शाकाहारी थी। वर्ष 2006 के आँकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 69 प्रतिशत लोग माँसाहारी हैं। यह तथ्य निराशाजनक लग सकता है, कि भारत में शाकाहारी वैश्विक स्तर से लगभग 10 प्रतिशत ही अधिक शाकाहारी हैं। परंतु अब जरा दूसरे पहलू को देखें –
नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मीट के अनुसार भारत में माँस का उत्पादन विश्व के उत्पादन के 2 प्रतिशत से भी कम है। भारत में खपत 5.5 किग्रा प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है वहीं विश्व की औसत खपत 40 किग्रा प्रति व्यक्ति है। सीधी सादी बात है कि हमारे यहाँ माँसाहार मुख्य भोजन नहीं है। हमारे यहाँ शाकाहार के प्रचलन का मुख्य आधार हमारे धार्मिक विश्वास हैं जबकि विदेश में शाकाहार अपनाने का प्रमुख कारण वैज्ञानिक आधार है। यही कारण है कि विदेश में शाकाहार बढ़ रहा है, जबकि आधुनिक भारतीय युवा धर्म को दकियानूसी मानकर वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में मांसाहारी हो रहे हैं।
फ्यूचर डाईट्स रिपोर्ट 2014 के अनुसार 1961 से 2009 तक के 48 वर्षों में भारतीय थाली में अन्न की मात्रा मात्र 3 प्रतिशत बढ़ी जबकि माँस मछली की मात्रा में 92 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जबकि दालों की मात्रा में 45 प्रतिशत कमी हो गई। संकेत स्पष्ट हैं कि हमारा आधार तो अच्छा है परंतु दिशा खतरनाक है।
2. माँसाहार की मारकता – विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 26 अक्टूबर 2015 को इस बात की घोषणा की कि संशोधित मांस तथा लाल मांस के उपयोग से कोलोरेक्टेल (बड़ी आंत के हिस्से कोलन एवं रेक्टम) कैंसर बढ़ रहे हैं या इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। वैज्ञानिक रिपोर्ट के 800 से अधिक वैज्ञानिक शोधों एवं अध्ययनों में पाया गया है कि संशोधित माँस एवं लाल माँस दोनों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है और 50 ग्राम संशोधित माँस प्रतिदिन खाने से कैंसर की संभावना 18 प्रतिशत बढ़ जाती है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि संशोधित माँस खाने से पूरी दुनियां में 34000 कैंसर से मृत्यु के मामले से आये है। इसी प्रकार लगभग 50000 मामलों में लाल माँस कैंसर से मृत्यु का जिम्मेदार माना गया है।
3. शाकाहार विश्व रक्षक एवं पोषक – अप्रैल 2016 में नेचर कम्यूनिकेशन में वैज्ञानिक अध्ययन बताता है कि शाकाहारी भोजन हो, तो माँसाहारी भोजन की तुलना में विश्व में कृषि भूमि की आवश्यकता आधी हो जाएगी। लेकिन अगर माँसाहारी भोजन हो, तो भविष्य में हमें आज की तुलना में 52 प्रतिशत अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता पड़ेगी। यदि माँस के उत्पादन के लिये पशुओं को खिलाया जाने वाला अन्न मनुष्यों को उपलब्ध हो तो 4 अरब अतिरिक्त लोगों का पेट भर सकता है। जबकि भविष्य में विश्व की आबादी 2 से 3 अरब बढ़ेगी।
4.पशुपालन का भारतीय प्राचीन विज्ञान – विश्व के ताजे पानी का एक तिहाई भाग पशुपालन पर खर्च होता है। इस पानी का 98 प्रतिशत पशुओं के लिए अन्न के उत्पादन में होता है। गाय, भैंस के 1 किलो माँस पर अनुमानतः 15415 लीटर पानी लगता है जबकि 1 किलो अन्न के लिए मात्र 1644 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। दरअसल पाश्चात्य पद्धति में माँस के लिये ही पशुओं को पाला जाता है। दूध, चमड़ा, ऊन आदि अन्य अतिरिक्त उत्पाद होते हैं। इसके विपरीत भारत में पशुपालन अहिंसक ऋषि कृषि से जुड़ा रहा है। प्राचीनकाल से पशु-पक्षी भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे है। हमारे यहाँ पालतू पशुओं को खाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हमारा पशुओं से पारस्परिक सहयोग का भरोसेमंद रिश्ता था।
कृषि प्रधान भारत वर्ष में गाय, बैल, भारतीय समाज के अभिन्न अंग रहे हैं जो जीवन भर किसान के सहारे रहे हैंइसी व्यवस्था के चलते भारत सोने की चिड़िया बन सका था। जो हमारा भरण पोषण करे उसे सम्माननीय स्थान देना स्वाभाविक है परंतु आज दुखद तथ्य यह है कि हम गोवंश की उपयोगिता स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। जिसका परिणाम यह हुआ है कि हम गाय, भैस, बकरी का दूध पीकर निश्चिंत हो जाते हैं। तथा अनुपयोगी पाड़ा बकरा एवं वृद्ध गोवंश कत्लखानों में कटकर भारत को माँस निर्यात में अव्वल स्थान दिला देते हैं
5. शाकाहार एवं गौ सेवा – जब भी शाकाहार जीवदया की चर्चा आती है तो सबके सामने जैन छवियाँ तैरने लगती हैं जबकि हिन्दू धर्म में भी शाकाहार पूरी तरह से रचा बसा है। हिन्दू गोमाता की पूजा करते हैं और इसकी रक्षा के लिए पूर्णतः चैकस दिखते हैं जबकि जैन गाय की पूजा तो नहीं करते हैं परंतु गौशालाओं के संचालन में हमेशा ही सबसे आगे रहते हैं। गौ सेवा एवं शाकाहार का अभी तक समुचित समन्वय नहीं हो पा रहा है। इस हेतु अगर हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों पर चर्चा चला सकें तो अहिंसक आंदोलन असरकारक हो सकता है। बापू कहते हैं – (क) गौ रक्षा आज जिस ढंग से हो रही है उसे देखकार मेरा हृदय एकांत में रोता है। (ख) गौ रक्षा करने वाले बहुतेरे हिन्दू दूसरे प्राणियों का माँस खाते है। वे गौरक्षा का दावा नहीं कर सकते। (ग) प्रत्येक गौशाला को आदर्श दुग्धालय और आदर्श चर्मालय बना डालना चाहिए।
6. शाकाहार एवं मानवीय करुणा – जब तक सभी शाकाहारी शक्तियाँ संगठित होकर एक मंच पर नहीं आती हैं तब तक शाकाहार एवं गौ सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति, आना संभव हैआज सभी धर्मों के लोग आडंबरों में उलझे हुये हैं, बँटे हुये हैं तथा धार्मिकता दम तोड़ रही है। शाकाहार अथवा गौसेवा के लिये आक्रामकता पूरी तरह से अनुचित है बल्कि हमें वैज्ञानिक ढंग एवं मानवीय करुणा से ओतप्रोत होकर अहिंसा का प्रचार प्रसार करना चाहिए। मदर टेरेसा मानवीय सेवाभाव के चलते स्वैच्छिक धर्मांतरण करती रहीं। इस पर सवाल उठाने वाले हमारे भाई, क्या मदर टेरेसा की भाँति देशभर में मानव सेवा के केन्द्र खोलकर शाकाहार एवं गौसेवा का जनमत नहीं बना सकते ?
7. अहिंसक आह्वान – धर्म एवं विज्ञान दोनों सत्य के उद्घोषक हैं। विज्ञान सतत प्रगतिशील है, इसीलिए समसामयिक, प्रासंगिक प्रामाणिक बना हुआ है। धर्म आडंबरों, आग्रहों, पंथों के बोझ तले दबा हुआ है, जबकि असलियत में उसकी अस्मिता विज्ञान से कहीं बढ़कर है अतएव अगर हम वैज्ञानिक तर्कवाद से धर्म के मूल स्वरुप को प्रकट कर सके तो यह धर्म विज्ञान की वेदी पर बैठकर मानव मात्र का कल्याण कर सकता है।
आइये, हम सब मिलकर धर्म एवं विज्ञान को साथ लेकर, क्रूरता-मुक्त, करुणादृयुक्त विश्व बनाने हेतु मानवता की सेवा करते हुये अहिंसक पथ पर अग्रसर हों।-अजित जैन ‘जलज’वीर वर्णी करुणापीठ, ककरवाहा, टीकमगढ़ (म.प्र.)
संकलन- डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर
22/2, रामगंज, जिन्सी इन्दौर 9826091247