धर्म के नाम पर हो रहा है मोरनृत्य
नई दिल्ली-: आज शनिग्रह शाँति के लिए भगवान इत्यादि की पूजा-पाठ या चालीसा मात्र से कार्य नहीं चलेगा बल्कि भगवंतों द्वारा बतलाये गयें सूत्रों पर चलने से सम्पूर्ण कार्य चलेगा|
पूजा-पाठ इत्यादि यह सब बहारी परत-सतह की क्रियायें हैं जो शाँति दायक हो सकती हैं लेकिन सुनिश्चित शाँति तो भगवान के प्रति नि:स्वार्थ समर्पण से ही सम्भव है | जबकि…
शनिग्रह अरिष्ट आदि के “भय” से किया गया पूजा-पाठ संशयपूर्ण हो सकता है क्योंकि “धर्म भय से नहीं अभय” से होता है अर्थात धर्म डर से नहीं निडरता से होता है लेकिन आज के दौर में कुछ लोगों ने धर्म की व्याख्या ही बदल दी उन्होंने जनता को गुमराह करके भय और लालच से धर्म करना सिखा दिया है | यदि भय और लालच से धर्म होता तो संसार से किसी महापुरुष की मुक्ति सम्भवतः नहीं होती |
आज के दौर में अधिकाँश तौर पर धर्म के नाम पर “मोर नृत्य” चल रहा है ऐसे मोर नृत्य में जब मोर नाचता है तब मोर अगाड़े की तरफ से सुन्दर तो दिखाई देता है लेकिन नाचते वक्त उसका पिछवाड़ा भी ……. दिखाई पड़ता है | इस मोर नृत्य की तर्ज पर कुछ लोगों ने देश की जनता को ग्रहों का भय दिखाकर धर्म की ऊपरी परत पर ही उलझा दिया है जिसके कारण शाँति या निवारण न मिलने पर जनता जनार्दन के कुछ लोग अन्य समुदाय के धर्मों की चौखटें चूमतें हैं |
देश में उपरोक्त के अतिरिक्त कुछ लोग कर्म सिद्धाँत पर चलने वाले शाश्वत स्व-धर्म को भी स्वयं की रोजी-रोटी के वास्ते ग्रहनाम के इशारे पर नचा रहे हैं लेकिन मेरे भरत जी के भारत देश में कुछ विरले पुण्यात्मा महापुरुष विराजित हैं जो शाश्वत धर्म की नींव को हिलने तक नहीं देते हैं |
उदाहरण के तौर पर आप स्वयं विचार कीजिए कि आपके दो पुत्र हैं जिसमें एक अमीर पुत्र आपको बढ़िया से बढ़िया छप्पन भोग का भोजन खिलाये, बढ़िया से बढ़िया सुख-सुविधा प्रदान करे लेकिन वह पुत्र सत्यता से परिपूर्ण आपके द्वारा दिये गये आदेशों का पालन न करे,सत्य बात होते हुए भी तर्क-कुतर्क करे और दूसरी तरफ दूसरा गरीब पुत्र किसी कारणवश आपको अाधुनिक सुख-सुविधा उपलब्ध न करा सके! छप्पन भोग के स्थान पर सूखी रोटी ही खिला सके किन्तु सत्य की पराकाष्ठा पर आपके द्वारा दिये गये आदेशों का तर्क-कुतर्क किये बिना अनुसरण करे,आपके आदेशों का पालन करे ! तब आप दोनों पुत्रों में से किसी को ह्रदय के समीप अधिक रखेंगे और प्यार करेंगे………?.सम्भवतः दूसरे गरीब पुत्र को ही ह्रदय से चाहेंगे,प्यार करेंगे क्योंकि वह आपके मुताबिक आपके आदेशों का पालन समर्पण व नि:स्वार्थ भाव से कर रहा है|
यह यथार्थ सत्य है कि ऐसे आज्ञाकारी पुत्र के लिए दुनियाँ के प्रत्येक माता-पिता का दिल उसके उद्धार व कल्याण के लिए स्वच्छता के साथ सदैव धड़कता रहेगा|
मेरे मतानुसार चाहत का जो नियम संसारिक दुनियाँ में लागू है वही भगवंतों की दुनियाँ में भी लागू होगा जिसके अन्तर्गत जो व्यक्ति भगवंतों द्वारा बतलाये गयें सूत्रों पर चलेगा वह भगवंतों के ह्रदय पट के नजदीक निश्चित होगा और जो मात्र छप्पनभोग एवं ग्रहों की उठा-पटक के लेन-देन में ही उलझा रहेगा उसका पता नहीं वह कहाँ होगा| -:पी.एम.जैन “ज्योतिष विचारक” दिल्ली |09718544977