दीपावली महापर्व पर ज्योतिषीय योग
टोंक। अभयदात्री, धनदायिनी महालक्ष्मी, रिद्वि-सिद्वि, मनोरथ सिद्वि फलदायक श्रीमहागणपति, ज्ञानबुद्वि चौसठ कलाओं की दात्री मॉं सरस्वती के पूजन का महापर्व दीपावली सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के प्रतीक पंच दिवसीय महापर्व के रूप मे उत्साह एंव उमंग से मनाया जाता है । पूर्ण आभामय स्वरूप मे सौलह श्रृगांर किये जब पृथ्वी पर महालक्ष्मी का पदार्पण होता है तब यह रात्रि साक्षात महारात्री बन जाती है जो दीपावली की रात्रि कहलाती है। दीपावली कार्तीक कृष्णा अमावस्या को ही क्यो मनाई
जाती है, इसका ज्योतिषमय स्वरूप काल पुरूष की कुन्डली अनुसार जाना जा सकता है। सूर्य शासक एंव आत्मा का, चन्द्रमा मन का, मंगल साहस, पराक्रम का, बुध वाणी, ज्ञान का, बृहस्पति आत्मज्ञान, चिंतन, मांगलिक कार्यो का, शुक्र सर्व भोगप्रद वीर्यतत्व प्रदान, भौतिक सुखो का, शनि कुशल शासक, न्यायप्रिय नेतृत्व का, राहु चिंतन शोध, उच्च ख्याति आकस्मिक लाभ का,
केतु मोक्ष गुप्त शत्रुओं पर विजय का कारक है । जब इन ग्रहों का संबंध काल पुरूष की कुंडली अनुसार केन्द्र व त्रिकोण से किसी पर्व योग मुहुर्त में बनता हो तो महालक्ष्मी योग बनता है एंव व्यक्तित्व संचित पुण्य तथा यज्ञ सिद्वि धर्म, गुरू, ईश्वर, कृपा, कर्म, मोक्ष, आदि से मानव जीवन का निर्माण स्वत ही सम्पन्न हो जाता है । वैदिक मान्यातानुसार सूर्य की कन्या सक्रान्ति मे पितृ श्राद्ध
पक्ष बनता है जिसमे पितरों का पृथ्वी पर आगमन होता है एंव उनको परिवार द्वारा तृप्त किया जाता है तुला संक्रान्ति में पितृगण उनके स्व स्थान मे प्रस्थान करते है उनके मार्ग दर्शन के लिये दीपदान का विधान अमावस्या (पितृ तिथि) को किया गया है जिससे पितृ प्रसन्न होते है पितरों के प्रसन्न होने से देवतागण भी प्रसन्न होते है। देवतागणों की प्रसन्नता से ही महालक्ष्मी से धनागम
होता है अत: दीपदान ही दीपावली पर्व है जो कार्तिक कृष्णा अमावस्या को ही पड़ता है अन्य दिनों में नही । सूर्य तुला राशि स्वाति नक्षत्र मे होता है एवं चन्द्रमा भी तुला राशि में होता है शुक्र भी स्वाति नक्षत्र में विचरण करता है अत: इस दिन स्वाति नक्षत्र हो तो बहूत सर्वश्रैष्ठ मूहर्त घटित होता है इस वर्ष यह योग ंिदनंाक 07नवम्बर 2018 बुधवार को सूर्य एवं शुक्र तुला राशि में एवं चन्द्रमा सूर्योदय से रात्रि 7.37 बजे तक स्वाति नक्षत्र तुला राशि में घटित हो रहा है । नक्षत्र स्वामी राहु एंव राशि स्वामी शुक्र है जो सर्वश्रेष्ठ मुहुर्त योग है। शुक्र अपनी स्व तुला राशि में 59 वर्ष बाद भ्रमण कर रहा है। जिससे मालव्य योग बन रहा है जो दीपावली पर्व पर विशेष संयोग है। ज्योतिषीय दृष्टि से तुला राशि शुक्र की होती है शुक्र सर्वभोगप्रद ग्रह है वीर्यत्व प्रधान है काल पुरूष की कुंडली में सप्तम भाव और धन भाव का स्वामी शुुक्र है हर मानव की मूल प्रवृति धन ऐश्वर्य को प्राप्त कर सुख
उपभोग करने की रहती है शुुक्र की राशि तुला में जब सूर्य और चंद्र की स्थिति होगी तब केंद्र त्रिकोण संबध से लक्ष्मी योग बनेगा क्योकि सूर्य पंचमेश है और चंद्रमा चतुर्थेश दोनो की एक ही राशि में युति के कारण चतुर्थेश पंचमेश योग से लक्ष्मी योग बनेगा नीच का सूर्य अपनी उच्च राशि लग्न में मेष को देखकर स्वास्थ्य वृद्धि करेगा। दीपावली के दिन लक्ष्मी के आगमन का विधान है जब लक्ष्मी आ रही है तो उसका स्वागत व पूजन अभिष्ट है अत: दीपावली का यह दिन और उसमें प्रदोष वेला लक्ष्मी पूजन से संबधित बनी है फिर इसमे सिंह लग्न आए तो तृतीय स्थान मे सूर्य व चन्द्रमा की युति तो रहेगी। साथ स्वाति नक्षत्र होने एवं नक्षत्र का स्वामी राहू होने से तीसरे स्थान मे पराक्रम वृद्धि एंव सर्व बाधा निवारण योग भी बन जायेगा।
द्वादशेश च्रंद राहू से पीडि़त होकर खर्च के योग पर नियंत्रण रखेगा लग्नेश सूर्य उपचय में जाने से बलवान होगा और अपनी निच राशि मे स्थित होकर राहू से पीडि़त होकर विपरीत राज योग से धन वृद्वि करेगा वही भाग्य की मेष उच्च राशि को सप्तम दृष्टि से देखकर भाग्य को भी बलवान करेगा अत: दीपावली में लक्ष्मी पूजन के लिए सिंह लग्न को महत्ता दी गई है। इस तरह के योग बन जाना भी इस दिन का रोचक तथ्य है। सांय प्रदोष समय या स्वाति नक्षत्र सिंह लग्न मे लक्ष्मी प्राप्ति के सभी तरह के अनुष्ठान सिद्ध किये जाते है। आधी रात मे जब सिंह लग्न आता है उस समय लक्ष्मी का आगमन माना गया है। तंत्र, मंत्र और यंत्र की सिद्वि महानिषिथ काल में की जाती है ।
अर्धरात्रे भवेत्येव लक्ष्मी राश्रयिंतु गृहान् बहा्रपुराण में प्रदोषार्धराव व्यापिन मुरया कहकर अर्धरात्रि में लक्ष्मी का पूजन श्रेष्ठ माना है । प्रदोष समये राजन कर्तव्या दीपमलिका कहकर प्रदोष काल में दीपों की पंक्ति से घर सजाने का विधान दिया है और अर्धरात्रि तक उसके स्वागत पूजन की तैयारी कही है ।
शाक्त ग्रंथो ने दीपावली के इस पर्व को त्रिरात्रि पर्व बताया है महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती इन त्रिगुणात्मिका शक्तियों का पूजन क्रमवार धनतेरस, रूप चौदस व दीपावली में किया जाकर इन तीनो रात्रियों में अख्ंाड दीपक जलाये जाते है । अत: यह त्रिरात्रि उपासना भी है कालरात्रि, महारात्रि, मोरात्रि श्रदारूणा ।
इस श्लोक के अनुसार कालरात्रि, धनतेरस और मोहरात्रि दीपावली महारात्रि शिवरात्रि और दारूणा है । अत: काल को प्रसन्न करने हेतु धनतेरस की सांय अंखड दीपक जलाने का शाक्त तंत्र में विधान है । कालदर्श में उल्लेख है कि दीपावली के दिनो में अपनी दरिद्रता दूर करने के लिए तीनो ही दिन महालक्ष्मी जी की आराधना करनी चाहिए । प्रत्युष आश्रयुग्दर्शेकृताभ्यंगादि मंगल: । भक्तया प्रपूजये देवीमलक्ष्मी विनिवृचये ।।
सूर्य आत्मा है (सूर्य आत्मा: जगत: सस्थुश्रय) अपने निज का स्वरूप है और चन्द्रमा मन है (चन्द्रमा मनसो जात:) अत: अमावस्या एक ऐसा अवसर है जबकि मन (चन्द्रमा) पूर्ण रूप से आत्मा (सूर्य) के समीपतम होकर आत्मरूप होता है उस दिन आत्मा के प्रकाश से मन आत्मरूप हो जाता है यही अवस्था मनुष्य का अंतिम ध्येय है अत: अमावस्या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मन के आत्मरूप हो जाने को दर्शाती हुई ज्योतिष शास्त्र अर्थ की गरिमा को प्रकट करती है । अत: मन के लिए अमावस्या से बढकर और कोई महत्वपूर्ण दिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से नही है मौलिक और आर्थिक दृष्टि से सूर्य और चन्द्रमा का सामिप्य भले ही शुभ फलप्रद न हो परंतु आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अमावस्या से अच्छा और कोई प्रतीक नही हो सकता जो मन और आत्मा के कई भेदों को हम पर प्रकट करने वाला दिन है । फलित ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चन्द्रमा दोनो राज्य से संबंधित है सूर्य राजा है तो चन्द्रमा रानी अमावस की रात को रानी राजा से मिलती है मानो दोनों प्रेम पूर्वक गले मिलते हो भगवान राम तो स्वंय राजाधिराज है और सीता उनकी अतिशय प्रिय रानी है, चौदह वर्ष के वनवास के बाद अमावस्या की रात्रि को ही उनका वैवाहिक संबंध अयोध्या में लौटकर हुआ था वनवास में तो वे सन्यासियों के रूप में रहते थे इस प्रकार राम और सीता का अमावस्या में मिलन ज्योतिष शास्त्र का अनुमोदन लिए हुए है । ज्योतिष शास्त्र अनुसार वस्तुओं के अतिरिक्त चन्द्रमा जनता का प्रतिनिधित्व भी करता है भगवान राम के वनवास के दिनो में अयोध्या की जनता व्याकुल थी कि कब यह अवधि समाप्त हो और उन्हे अपने प्यारे सूर्यवंशी राजा
के दर्शनो का सौभाग्य प्राप्त हो सूर्य से ही सूर्य वंश चलता है जनता ने जिसका प्रतिनिधित्व चन्द्रमा करता है एक ऐसा दिन अपने राजा के स्वागत के लिए चुना जिस समय प्रकृति में भी जनता (चन्द्रमा) राजा (सूर्य) से मिल रही हो । वह समय दीपावली का समय है । अत: अनादि काल से यह दीपावली पर्व जब से मानव ने पैदा होकर ज्योतिष का आश्रय लिया तब से चला आ रहा है । अत: ज्योतिषमय स्वरूप दीपावली महापर्व प्रकाशवान ज्योति प्रज्ज्वलित करने वाला ज्योतिष पर्व है।
बाबू लाल शास्त्री (साहू)
मनु ज्योतिष एंव वास्तु शोद्य संस्थान टोंक
बडवाली हवेली के सामने सुभाष बाजार टोंक
मो. 9413129502, 9261384170