*प्रश्न: आलू, प्याज, लहसुन, चुकंदर, शलजम, मुली, गाजर, अदरक, शकरकंद, रतालू, जमीकंद, सुरण, हरी हल्दी आदि जमीन-कंद (कंदमूल) खाने का निषेध क्यों है?.
उत्तर: हमारा धर्म तीर्थंकर परमात्मा के विशिष्ट केवलज्ञान की ज्योति से जगमगा रहा है। वह विज्ञान की खोजों से बहुत आगे है, और हमारे धर्म शास्त्र में लिखित कई बातें अब विज्ञान द्वारा समर्थित हो रही है।
जैन धर्म का जीव विज्ञान बहुत विशाल है। जैन धर्म कहता है कि आलू आदि उपरोक्त कंदमूल अनंतकाय हैं। अनंतकाय अर्थात् एक ही शरीर में स्थित बहुत से जीव। कहा गया है कि सुई की नोक जितने आलू के टुकड़े में अनंत जीव रहे हुए हैं।
ऐसे कंदमूल खाने का अर्थ है, इन सभी जीवों का नाश। मात्र जीभ के स्वाद की खातिर अनंत जीवों का सत्यानाश उचित नहीं है।
*हमें जीने के लिए खाना है, खाने के लिए जीना नहीं है।* मात्र जैन ही नहीं पर अन्य धर्मों के शास्त्र भी कंदमूल भक्षण को भयानक पाप के तौर पर गिनते हैं। नवरात्रि में प्याज-लहसुन का निषेध इसका एक उदाहरण है।
अब इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखते हैं, विज्ञान कहता है कि जहां अंधेरा होता है, वहां पुष्कल जीव होते हैं। उदाहरण के तौर पर अंडरग्राउंड (बेसमेंट) में, जमीन के नीचे, दुछत्ती में, बांध के पानी में छोटे-छोटे असंख्य जीव होते हैं। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता वहां ऐसे असंख्य जीव होते हैं। हम जानते हैं कि ये सब कंदमूल जमीन की सतह के नीचे उगते हैं जहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुंच पाती।
*प्रश्न: मुंगफली भी तो जमीन के नीचे उगती है फिर उसे और उसके तेल को कैसे खाया जा सकता है?*
उत्तर: मुंगफली जमीन के नीचे ही होती है यह तो बिलकुल सत्य है। पर मुंगफली में पुष्कल तेल होने से उसमें अनंत मात्रा में जीव पैदा ही नहीं होते। उल्टे आपने देखा होगा कि घरों में औरतें दाल आदि सड़ नहीं जाय उसके लिए उनको तेल का हाथ लगा कर मसल देती है। पिसी लाल मिर्च में भी तेल मिलाते हैं। तेल के कारण जीव उत्पन्न नहीं होते और दालें-अनाज आदि नहीं सड़ते। तेल जीवों की उत्पत्ति को रोकता है। इस कारण से मुंगफली और उसके तेल का प्रयोग किया जाता है। लहसुन में तेल नहीं होता और लहसुन का रस जीवों की उत्पत्ति नहीं रोकता, इस कारण से लहसुन का प्रयोग नहीं होता।
*प्रश्न: अदरक काम में नहीं ली जाती और सौंठ प्रयुक्त होती है, ऐसा क्यों?*
उत्तर: अदरक, हरी हल्दी आदि भी जमीन के नीचे ही उगती है। कंदमूल-अनंतकाय के लक्षण भी उसमें हैं। फिर भी सूखी हुई सौंठ, हल्दी आदि काम में ली जाती हैं।
इसका कारण यह है कि परमात्मा तो करुणा के भंडार थे। उन्होंने हमारी आत्मा के साथ ही हमारे शरीर की भी चिंता की है। उबले पानी के प्रयोग, रात्रि भोजन निषेध आदि में जैसे आत्मा के साथ हमारे शरीर के आरोग्य की बात भी जुड़ी हुई है वैसे ही सौंठ, हल्दी आदि के उपयोग में भी जुड़ी हुई है।
घर की रसोई में काम में आते अनेक मसाले औषधि के समान है। अजवाइन, सौंफ, जीरा, सौंठ, हल्दी, पीपरामूल, काली मिर्च, दालचीनी आदि मसाले अनेक रोगों को होने से रोकते हैं और हो गए हों तो ठीक करते हैं।
प्राकृतिक तौर पर सूखे हुए हल्दी-सौंठ आदि में पूर्व में रहे हुए अनंत जीव अपना आयुष्य पूर्ण होने पर अन्य भव में चले जाने से उसमें जीव हिंसा का पाप नहीं लगता।
*प्रश्न: अगर अदरक का सुखाया रूप सौंठ काम में लिया जा सकता है तो आलू का सूखा हुआ रूप चिप्स या वेफर्स भी तो खाए जा सकते हैं न ?*
उत्तर: जैन धर्म में इसका सूक्ष्म दृष्टि से विचार करके निषेध किया हुआ है। किसी भी जीव की हिंसा हमें करनी नहीं है। सौंठ प्राकृतिक तौर पर सूखती है जबकि आलू प्राकृतिक तौर पर सड़ जाता है, सूखता नहीं है। यही दोनों में फर्क है।
हमें सौंठ की या हल्दी की आरोग्य के लिए आवश्यकता है, आलू के चिप्स या वेफर्स की नहीं। और फिर सौंठ-हल्दी के प्रयोग की मात्रा अत्यल्प होती है, उसके फाके नहीं मार सकते। सौंठ आदि स्वाद के लिए उपयोग में नहीं ली जाती। सौंठ से पेट नहीं भरता और आसक्ति भी नहीं होती। आलू के वेफर्स तो स्वाद के लिए खाए जाते हैं, स्वास्थ्य के लिए नहीं।
अनासक्ति नाम के गुण की रक्षा के लिए भी आलू के चिप्स आदि के उपयोग की मनाही की गई है।
इन कारणों से सौंठ का उपयोग हो सकता है और आलू के वेफर्स के उपयोग की मनाही है। भूतकाल में अगर इनको खाया हों, तो जागें जब से सुबह, आज से ही कंदमूल का त्याग करें और सच्चे श्रावक-श्राविका बनें।