आगामी 5 जुलाई को गुरु-पूर्णिमा पर्व है| इस परम पुनीत प्रसंग पर गुरु की परिभाषा करते हुए मथुरा में विराजमान परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने कहा कि गुरु वही होता है जिन्होंने स्वयं मंजिल या लक्ष्य की प्राप्ति कर ली हो तथा अन्य जीवों का मार्गदर्शन करने में भी समर्थ हों| दिगम्बर साधु वास्तविक गुरु नहीं हैं, वह तो केवल अरिहंत भगवान की परम्परा से गुरु हैं|
👉हमारे वास्तविक गुरु अरिहंत भगवान हैं, क्योंकि उन्होंने अपने चार कर्मों का नाश कर केवलज्ञान की प्राप्ति कर ली हैं तथा अब वह हम सभी को मोक्ष मार्ग के बारे में अच्छे से अवगत करवा सकते हैं|
एलाचार्य श्री ने बताया कि गुरु पूर्णिमा अपने गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाने का दिवस है|आज समाज में अपना गुरु बनाने की अंधी होड़ लगी हुई है, हर कोई साधुओं को अपने हिसाब से बांटने में लगा हुआ है| जबकि कोई भी व्यक्ति अपने लिए गुरु का चयन नहीं कर सकता|
👉गुरु पूर्णिमा का यह दिवस हमें बताता है कि हमें किसी को अपना गुरु नहीं स्वीकारना बल्कि किसी के प्रति खुद को समर्पित कर उसका शिष्यत्व अपनाना है|
एलाचार्य श्री ने आगे बताया कि जीवन को सत्पथ दिखाने वाले अरिहंत भगवान ही हैं, दिगम्बर मुनि तो केवल उनकी वाणी को जनसाधारण में पहुंचा रहे हैं| अतः अब हम सभी को अपने वास्तविक गुरु – “अरिहंत परमेष्टि” की शरण में आ जाना चाहिए|-समीर जैन