सदगुरु एक अनगढ़ पत्थर को भगवान का रूप देने वाले शिल्पी हैं : आचार्य श्री ज्ञानसागर


बारां, राजस्थान। गुरु पूर्णिमा पर प्रातः काल की पावन बेला पर अनेक स्थानों के श्रद्धालुओं ने सामाजिक दूरी का पालन करते हुए गुरुचरणों में मस्तक नवाकर अपने को धन्य किया, गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विराटनगर, आगरा, मुजफ्फरनगर प्रमुख स्थानों से आये भक्तों ने अचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया।सभी ने शासन-प्रशासन के नियमों का पालन करते हुए गुरु पूर्णिमा मनाई।
गुरु पूर्णिमा के पावन क्षणों में गुरुवर को माँ जिनवाणी प्रदान करने का सौभाग्य श्री चंदाबाई सेठी अशोक जी सेठी ने पूरे परिवार के साथ प्राप्त किया। पवन जैन बसेड़ा (मुजफ्फरनगर) ने अचार्यश्री ससंघ को शास्त्र भेंट किया। बाहर से पधारे श्रद्धालुओं ने सप्त ऋषियों के श्री चरणों में अर्घ समर्पित किया। तदनंतर आचार्य श्री शांतिसागर जी ‘छाणी महाराज के समस्त पट्टाचार्यों को अर्घ समर्पित किया।
इसी कड़ी में श्रद्धालुओं ने पूज्य गुरुदेव की सुसज्जित, अष्टद्रव्य से भक्ति-भाव के साथ महाअर्चना की।
पूजन के पश्चात् आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन को नया रूप देने के लिए, अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए गुरु का बहुत महत्व है। जिंदगी की नई शुरूआत करने के लिए गुरु प्रकाश का कार्य किया करते हैं।
‘गुरु की महिमा वरणी न जाय’ आप ये पंक्तियाँ पूजन के मध्य पढ़ते हैं। सद्गुरुओं की महिमा को शब्दों में नहीं कहा जा सकता। गुरु हमारी जीवन रूपी बगिया को सिंचित कर पुष्पित-पल्लवित करते हैं। सदगुरु एक अनगढ़ पत्थर को भगवान का रूप देने वाले शिल्पी हैं। भूले-भटकों को सही राह दिखाने के लिए मील के पत्थर को सदृश लक्ष्य तक पहुँचाते हैं। गुरु ही अंगुली पकड़कर हमें चलाते हैं। प्रथम गुरु जन्मदाता है, जो मात्र जन्म नहीं देते, संस्कारों का शंखनाद कर अपनी संतान को ऊँचाईयों तक ले जाते हैं। द्वितीय गुरु के रूप में वह शिक्षक होते हैं, जो अनेक विद्याओं का ज्ञान कराते हैं। मोक्षमार्ग की ओर ले जाने में सद्गुरुओं का बहुत महत्व है।
गुरु पूर्णिमा के दिन आप सभी कुछ न कुछ अच्छा संकल्प लेकर जायेंगे तो आप सभी का यहाँ आना सफल हो जाएगा। इस दिन गौतम गणधर को अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर जैसे गुरु प्राप्त हुए थे। तभी से यह दिन गुरु पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान महावीर स्वामी को केवल ज्ञान हो गया था, किंतु उनकी दिव्य देशना 66 दिन तक नहीं हुई। चूँकि ऐसा योग्य व्यक्ति उनके समवशरण में नहीं पहुँचा था, जो उनकी वाणी को सुनने की पात्रता रखता हो गौतम गणधर जैसे ही समवशरण में पंहुचे, मानस्तंभ को देखते ही उनका मान चूर-चूर हो गया और उनके पंहुचते ही प्रभु की वाणी खिर गई। गुरुभक्ति के माध्यम से व्यक्ति संसार समुद्र से पार हो सकता है मैंने तो जो कुछ भी पाया है गुरुभक्ति के बल पर पाया है।

डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर