भाव सुधारो तो भव सुधर जाएगा :मुनि श्री सुप्रभसागर जी


महाराज ने गौशाला मसौरा में ऑनलाइन प्रवचन में कहा कि कर्म सिद्धान्त को समझने वाला ही कर्मों के बंधन को तोड़ सकता है। दूसरों के दोष मत देखों न ही दूसरों को दोष दो। वह तो मात्र निमित्त हैं, वस्तुतः तो हमें स्वयं के द्वारा किये गए कर्मों का फल मिल रहा है। कर्मों के उदय में जो जितना समताभाव रखता है वह उतना अधिक कर्मों के बंधन को तोड़ देता है। प्रत्येक समय व्यक्ति अगर अपने भावों को सुधारने का प्रयास करे तो भव सुधर सकता है। ‘भाव बनाये, भाव बिगाड़े, बना है भावों का संसार’। अच्छे भावों से आप अपने जीवन का अच्छा नक्शा बना सकते हो, बुरे भावों से आप अपने जीवन का बुरा नक्शा बना सकते हो।
उन्होंने कहा कि अपने आपको सुधारो , जब भी बुरे विचार आएं तुरंत पश्चाताप करो। जब जब दूसरों की निंदा करते हो उस समय आप नीच गोत्र का बंध कर लेते हो अगर नीच गोत्र के बंध से बचना चाहते हो तो आज से दूसरों की निंदा करना बंद करो और अपनी निंदा करना प्रारंभ कर दें। अपनी निंदा करने वाला अपने जीवनरूपी मैली चादर को साफ सुथरा बना सकता है।
श्रमण रत्न मुनि श्री 108 सुप्रभ सागर जी एवं नगर गौरव श्रमण रत्न मुनि श्री 108 प्रणत सागर जी महाराज ससंघ की प्रगल्भित पावसयोग , चातुर्मास कलश स्थापना विगत दिनों नगर के अटा जैन मंदिर में हुई थी। नगर में खासतौर पर अटा जैन मंदिर एरिया में कोरोना संक्रमण के केश विगत दिनों से बढ़ने के कारण साधुओं की सुरक्षा, साधना की अनुकूलता को देखते हुए मुनिश्री ससंघ मसौरा स्थित गौशाला में विराजमान हैं। 
