चंदेरी मध्यप्रदेश के संग्रहालय में पुरातन जैन तीर्थंकर प्रतिमाओं की दुर्दशा
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर 9826091247
चंदेरी शहर बुंदेलखंड और मालवा की सीमाओं पर मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है, जिसका इतिहास हमें 11 वीं शताब्दी में ले जाता है। यह शहर 11 वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक के ऐतिहासिक स्थलों से भरा हुआ है। सुन्दर पहाड़ियों, झीलों और जंगल से घिरा, यह आकर्षक स्थान चंदेरी साड़ियों और ऐतिहासिक स्मारकों के लिए अविश्वसनीय रूप से प्रसिद्ध है। जो हर साल इस जगह पर बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा, महान जैन स्मारकों, प्रसिद्ध त्रिकाल चैबीसी, खंडारजी और उनकी आकर्षक संस्कृति चंदेरी को मध्य प्रदेश के सबसे प्रचलित पर्यटन स्थलों में से एक बनाती है। चंदेरी में पर्यटन को बढ़ावा देने वाली कई चीजें हैं जैसे चंदेरी किला, चंदेरी संग्रहालय, जैन मंदिर और सुन्दर झीलें।
चंदेरी की गौरवमय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक पहचान बनाये रखने के उद्देश्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अप्रैल 1999 में सिंहपुर महल में एक संग्रहालय की स्थापना की। सितम्बर 2008 में संग्रहालय को वर्तमान भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया। इसमें पांच वीथिकायें हैं, जिनमें एक वीथिका में जैन तीर्थंकर मूर्तियां प्रदर्शित हैं। किन्तु बहुसंख्य जैन मूर्तियों को उस वीथिका में स्थान नहीं दिया गया है, बल्कि उन्हें संग्रहालय के सम्मुख खुले बाहरी प्रांगण में यत्र तत्र रखा गया है। चार पांच जैन तीर्थंकर मूर्तियां तो बेतरतीव ढंग से ग्रहालय के प्रवेशद्वार के नीचे जूते-चप्पल उतारने की जगह पर पड़ी हुई हैं। एक सुन्दर जैन तीर्थंकर प्रतिमा को संग्रहाल की बाहरी दीवार में चिपका कर खुले में रखा गया है। इसके साथ कोई परिचय पट्टिका या पंजीयन क्रमांक प्रदर्शित नहीं है। एक सुन्दर सर्वतोभद्रिका तीर्थंकर प्रतिमा दूर को बगीचानुमा लाॅन में खुले आसमान में रखी गई है। ऐसी पांच छह जगह जैन प्रतिमाएं बाहर रखीं हुई हैं। प्रायः किसी मूर्ति के साथ कोई परिचय पट्टिका या पंजीयन क्रमांक प्रदर्शित नहीं है।
यह देख कर बहुत अफसोस होता है और प्रबंधन पर खीझ आती है कि इन्हें जानबूझकर इस तरह खुले में रखा गया है जिससे उन पर गर्मी में कड़ाके की धूप तो बरसात में पानी ओले सब पड़ते रहते हैं। ऐसे में इन मूर्तियों के पाषाण का धीरे धीरे क्षरण हो जाय तो कोई विशेष बात नहीं है। पत्थर यदि तेज धूप में खूब गरम हो जाय और उस गरम पत्थर पर पानी डाल दिया जाय तो पत्थर दिरक जाता है। ऐसी स्थिति अनेकों बार बन जाती है कि खूब गरम धूप निकली है और अगले क्षण बारिस होने लगती है। ऐसे में यह अमूल्य पुरासंपदा नष्ट हो रही हो तो इसका कौन जिम्मेबार होगा। हम पुरातत्व विभाग का इस ओर ध्यान आकृष्ट कर निवेदन करते हैं कि इस लापरवाही का तुरन्त सुधार कर उन्हें उनके परिचय-पट्टिका के साथ वीथिका में प्रदर्शित किया जाय।