भारतीय राष्ट्र ध्वज की छत्रछाया में ही सुरक्षित हैं सभी समुदाय के धार्मिक ध्वज 👉 आचार्य श्री ज्ञानभूषण जी महाराज
जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जी के पुत्र चक्रवर्ती राजा “भरत जी” के भारत में राष्ट्रीय ध्वज के तले यानी तिरंगा की छत्रछाया में ही सुरक्षित हैं सभी समुदायों के धार्मिक ध्वज! यह तथ्य भारत में निवास करनेे वाले प्रत्येक समुदाय केे हर एक व्यक्ति के दिल और दिमाग मेें सर्वोपरि होना चाहिए क्योंंकि अगर हमारा देश-हमारा राष्ट्र सुरक्षित है तो हम और हमारा धर्म भी सदैव सुरक्षित रहेेेगा|देशहित-समाजहित के लिए प्रत्येक नागरिक की यह भी जिम्मेदारी सर्वोपरि होनी चाहिए कि उसे देश के राजस्व (टैक्स)आदि की किसी भी रूप में चोरी नहीं करनी चाहिए क्योंकि चोरी तो चोरी है और चोरी करना पाप है| राजस्व की चोरी करने जैसे प्रकरण को प्रत्येक समुदाय के धार्मिक ग्रन्थों में “महापाप” की संज्ञा दी गई है|👉धार्मिक तौर पर हमें विशेष रूप से यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ईमानदारी से सरकार को भुगतान किया गया टैक्स ना जाने कितने लोगों के बीमारी इत्यादि जैसे प्रकरणों पर सरकार द्वारा खर्च किया जाता है, जिसका अदृश्य रूप से ही सही लेकिन उसका पुण्य टैक्स दातार के खाते में सीधा-सीधा जमा होता रहता है और यह टैक्स, टैक्स दातार के मानसिक व पारिवारिक भविष्य को उज्जवल बनाता है| 👉हमारा हिन्दुस्तान सद्भाव,सुसंस्कारित होने के साथ -साथ अतिसुन्दर प्रकृति से भरपूर देश है लेकिन देश में कुछ स्वार्थी लोग भी हैं जो जाति-धर्म के नाम पर लोगों को भटकाने व लडाने का धंधा चलाते हैं और आपसी फूट डालकर अपनी तिजोरियाँ भरने से हिचकिचाते नहीं हैं लेकिन ध्यान रखना ऐसे लोगों का अंत भी सुखद नहीं होता है| “फूट ड़ालो और राज करो” वाले चंद लोगों की निजी ज़िंदगी में झाँकने पर पता चलता है कि ऐसे लोग अपने सन्तान पक्ष से कहीं ना कहीं दुखी ही मिलते हैं|👉याद रखना संसारिक तौर पर आठ लक्ष्मी ही सदैव भ्रमणशील रहती हैं जिसमें सन्तान लक्ष्मी सबसे बड़ी लक्ष्मी होती है| यदि किसी की सन्तान लक्ष्मी ही बिगड़ गई,तो यह निश्चित मान लेना कि उसकी सारी ज़िन्दगी तबाह हो गई! तभी तो कहते हैं कि👉”पूत सपूत तो क्यों धन संचय और पूत कपूत तो क्यों धन संचय”|👉हमें याद रखना चाहिए कि देश का झंड़ा हो या किसी समुदाय विशेष का झंड़ा हो कोई एक समुदाय या एक वर्ग उसे तैयार नहीं कर सकता है| इसी तरह चाहे मन्दिर, मस्जिद,गुरूद्वारा,चर्च या कोई भी धार्मिक -सामाजिक स्थल हो उसका निर्माण मात्र एक समुदाय के सहयोग से कदापि नहीं हो सकता है कहने का मतलब है कि उस वस्तु के निर्माण कार्य में दृश्य-अदृश्य रूप से हिन्दू- मुस्लिम इत्यादि सभी सहयोगी होते हैं| 👉यह हमारा देश भारत ही है जनाब! यहाँ ना तो मतभेद है और ना ही मनभेद है कि हिन्दू के हाथ लगने से मुस्लिम समुदाय का कोई निर्माण अशुद्ध हो जायेगा या मुस्लिम के हाथ लगने से किसी हिन्दू समुदाय का निर्माण अशुद्ध हो जायेगा| हमारे भरत जी के भारत देश में देशहित की बात हो या वस्तुहित की हम सब मिलजुल कर ही निर्माण करते हैं|प्रस्तुति👉पी.एम.जैन “ज्योतिष विचारक एवं चीफ एडिटर”पारस पुँज” नई दिल्ली,मो.9718544977