रूप से नहीं आचारण से सुन्दर होना चाहिए -आचार्य विमदसागर

उन्होंने कहा कि शास्त्रों में कहा है- ‘‘भक्तेः सुन्दररूपम्‘‘, भक्ति से सुन्दर रूप प्राप्त होता है। ऊपर से तो चेहरे को क्रीम आदि से चमका सकते हैं पर वह कितने समय तक चमकेगा जैसे ही पसीना आयेगा सब धुल जाएगा। सीता जन्म से सुंदर थीं, अंजना जन्म से सुंदर थीं, वे ब्यूटी पार्लर कराकर सुंदर नहीं बनी थीं। आचरण से सुंदर थीं, चारित्र से सुंदर थीं। शरीर से सुंदरता कोई मायने नहीं रखता। आचरण सुंदर होना चाहिए। कोयले को कितना ही ब्यूटी पार्लर में चमकाओ, भैंस को गोल्डन क्रीम लगाओ पर वह काली ही रहेगी। श्रीपाल को कुष्ठ रोग हुआ तो उसने गुरु की भक्ति की, भगवान की आराधना की, आठ दिन का सिद्धचक्र अनुष्ठान किया, जिससे उसका कुष्ठ रोग दूर हो गया। भगवान की भक्ति, गुरु की सेवा से सुंदर और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति होती है और दूसरों के उपकार-अच्छाई करने से जो संतोष आनंद प्राप्त होता है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।


