अयोध्या मे जैन तीर्थंकरो के इतिहास और परंपरा को सहेजने के उत्तर प्रदेश शासन के आदेश का जैन समाज स्वागत करता है और शासन का आभार प्रकट करते हुए श्री आदिनाथ स्मृति केंद्र के अध्यक्ष शैलेंद्र जैन ने बताया कि शासन के इस आदेश से जैन समाज उत्षाहित है।अयोध्या श्रीराम के साथ ही पांच जैन तीर्थंकरो की जन्मभूमी भी है।इक्ष्वाकू वंश का उद्भव आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से हुआ है इषी वंश मे दूषरे अजितनाथ चौथे अभिनंदननाथ पांचवे सुमतिनाथ चौदहवे अनंतनाथ स्वामी एवं श्रीराम का जन्म हुआ।जिनका उल्लेख प्राचीन जैन साहित्य मे मिलता है।अयोध्या का जितना विस्तार पूर्वक सुंदर वर्णन जैन साहित्य मे है उनता अन्य मे नही।
पुरातत्व की दृष्टी से भी अयोध्या से मिली भारत की प्राचीनत चौबीस सौ वर्ष पुरानी एक जिन केवलिन की मूर्ती हनुमान गढी के पास से खुदाई मे मिली थी एक अन्य प्रतिमा सातवी सदी की निर्मोही अखाडे से मिली इषी क्रम मे दसवी सदी से पंद्रहवी सदी की तीन प्रतिमाएं राम कथा संग्रहालय मे है जिसमे खंडित एक प्रतिमा ऋषभदेव की केश सहित है इसी काल की एक प्रतिमा कटरा के मंदिर मे है।कटरा मंदिर मे अन्य प्रतिमांए मध्यकाल की है।अति प्राचीन दो ऋषभदेव की दो प्रतिमांए सुल्तानपुर से मिली है।नंदिवर्धन ने बनवाया स्तूप अब मणिपर्वत के रूप मे प्रसिद्ध है।अयोध्या पर पहला आक्रमण जूरण शाह ने ग्यारहवी सदी मे कर यहां के आदिनाथ के विशाल मंदिर को तोडा उष समय अयोध्या और आष पास के क्षेत्रो मे जैन धर्म का व्यापक प्रसार प्रचार था जिनकी पुष्टी इन पुरावशेषो एवं गजेटियर के उल्लेखो आदि से स्वतः हो जाती है।आदिनाथ के जन्म स्थान पर कुछ समय बाद ही एक चरण स्थापित हो गए थे जिनका 1724,1866, और1956मे हुआ।अयोध्या से बीस किमी पहले पंद्रहवे तीर्थंकर धर्मनाथ स्वामी की जन्म स्थली रत्नपुरी रौनाही है।इसके श्वेतांबर मदिर का मौर्य सम्राट संम्प्रति ने जीर्णोद्धार कराया था।दिगम्बर मंदिर मे पार्श्वनाथ की नवी सदी की धातु प्रतिमा थी जो अब नही।इषी प्रकार साहित्य शिलालेख सिक्को से भी पता चलता है कि इस क्षेत्र मे जैन परंपरा ढाई हजार वर्षो से जैन परंपरा अति समृद्ध रूप मे रूप पूरे क्षेत्र मे स्थापित थी।