*पटना सिटी:*जैन धर्म के अंतिम 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 2621वीं जन्म कल्याणक महोत्सव पर जैन समुदाय ने गुरुवार को खाजेकलां स्थित श्री दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर से कंगन घाट तक धूमधाम के साथ हर्षोल्लासपूर्वक भव्य शोभायात्रा निकाली। इसके पूर्व तीर्थंकर महावीर जयंती चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के अवसर पर श्री चंद्रप्रभु जिनालय पंचायती मंदिर में भगवान महावीर स्वामी का अभिषेक, शांतिधारा व विशेष पूजन-अर्चना कर प्रभु के समक्ष अर्घ्य समर्पित किया गया। तत्पश्चात मंदिर जी से पारम्परिक केशरिया वस्त्र में जैन श्रद्धालुओं ने श्री जी को पालकी में विराजमान कर शोभायात्रा में शामिल हुए।
शोभायात्रा में मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज व मुनि श्री अरह सागर जी महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन समाज के संयुक्त तत्वावधान में निकाली गई शोभयात्रा में श्रद्धालु अहिंसा परमो: धर्म:, जियो और जीने दो, शाकाहार, शांति, दया और करुणा का संदेश देते चल रहे थे। वहीं पंचरंगे जैन ध्वज और भव्य झांकी के मध्य भगवान महावीर के जयकारों और अहिंसात्मक दिव्य संदेशो से नगर गुंजायमान हुआ। इस दौरान पुरुष, महिलाएं, युवा, बच्चे सभी श्रद्धालुगण बैंड-बाजे के धुन पर भक्ति नृत्य करते चल रहे थे।
शोभायात्रा का समापन कंगन घाट में बने पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के मुख्य पूजा पंडाल में पहुंचकर हुआ। इसके उपरांत विधि-विधान के साथ मुख्य पूजा पंडाल में ध्वजारोहण और मंडप उद्घाटन समेत अन्य मंत्रोच्चारण की क्रियाओं को प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी अभय भैया जी व ब्र•संजय भैया जी ने पूर्ण कराया। जहां जिनेन्द्र प्रभु को पाण्डुकशिला पर विराजमान कर श्रद्धालुओं ने अभिषेक, शांतिधारा व पूजा-अर्चना किया। इस अवसर पर विभिन्न प्रांतों से काफी संख्या में जैन श्रद्धालु शामिल हुए। उक्त जानकारी मीडिया प्रतिनिधि प्रवीण जैन ने दी।
*अंतर्मन से शुद्ध होने के लिए ध्यान और तप जरूर – भगवान महावीर*
जैन समाज से मीडिया प्रतिनिधि ने प्रवीण जैन कहा कि भगवान महावीर लोक कल्याण का मार्ग अपनाकर विश्व को शांति का संदेश दिया है। कोई भी मनुष्य बिना ध्यान और तप किए बिना अंतर्मन से शुद्ध नहीं हो सकता। स्वामी महावीर की उपदेश, आदर्श को जीवन में आत्मसात कर समाज, धर्म और देश की सेवा में सक्षम बनने का प्रयास करना चाहिए। दुनियां में महावीर स्वामी के प्रमुख संदेश जियो और जीने दो , अहिंसा परमो: धर्म: आज भी आकाश में गूंज रहा है। वर्द्धमान महावीर ने ऐसे ही नही निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त कर लिया , उन्होंने कठोर तप , त्याग , तपस्या का परिचय दिया है जिसके वो प्रतिमूर्ति आदर्श है। उन्होंने सम्यक दर्शन , सम्यक ज्ञान , सम्यक चारित्र के उपलब्धि के साथ समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त किया था।