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Home›धर्म-कर्म›क्षमा,अहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है-डॉ. निर्मल जैन (जज)

क्षमा,अहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है-डॉ. निर्मल जैन (जज)

By पी.एम. जैन
September 9, 2022
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तत्समय भारत के उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल के चेहरे पर दंगों के दौरान एक व्यक्ति ने थूक दिया।  सरदार पटेल ने अंगोछे से हाथ साफ कर के बोला कि –चलो किसी ने तो गुस्सा थूका।  जिसने सहना सीख लिया उसने रहना सीख लिया। दो व्यक्तियों में चाहे वह पति-पत्नी हों, भाई-बहन हो, माता-पिता हों अथवा मित्र और पड़ोसी हों किसी एक को तो सहनशील होना ही पड़ेगा। जो समर्थ है शक्तिशाली है वही सहन और क्षमा कर सकता है। 

लम्बे समय तक प्रतिशोध, जलन, क्रोध, आत्मग्लानि, क्लेश, धोखा, ईर्ष्या इत्यादि के विचार रखने से तन और मन रुग्ण हो जाते हैं जिसके लिए क्षमा से अच्छी कोई दवा नहीं है। क्रोध को त्याग कर अपने स्वरूप में स्थिर होना ही क्षमा है। बड़े-बड़े नगरों में बाएं चलने का नियम, लाल बत्ती पर ठहरने का संकेत -ये सब एक- दूसरे को क्षमा करते चलने वाली प्रक्रियाएं हैं। ये आपकी आजादी को पलभर को बाधित तो करते हैं पर वही क्षमा आपको और दूसरों को दुर्घटनाओं से बचाती है। क्षमा की भावना हमें मानसिक रूप से संतुलित करती है। क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों महान गुण है जो मनुष्य के मन को हल्का कर उसे सुखी बनाते हैं। क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों महान गुण है जो मनुष्य के मन को हल्का कर उसे सुखी बनाते हैं। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा, नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा, सद्गुण का संवाद है। क्षमा, अहिंसा का अनुवाद है। क्षमा, दिलेरी के दीपक में दया की ज्योति है। क्षमा, अहिंसा की अंगूठी में मानवता का मोती है।

          क्षमा मांग कर जहां हम स्वयं का बोझ उतारते हैं, वहीं किसी को क्षमा करके दोनों का मन निर्मल करते हैं। सामान्यतः किसी अप्रिय और अनचाही घटना पर क्रोध न करना क्षमा है। क्षमा धारण करने से ही संहार और प्रतिरक्षा में नष्ट होने वाली शक्ति का उपयोग गरीबी और बेरोजगारी की जटिल समस्या के निस्तारण में किया जा सकता है। क्षमा से अहिंसा का विकास होता है। क्षमा ही सच्चे समाजवाद की आधारशिला है।

       क्षमावाणी पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। क्रोध को उत्पन्न न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिये स्वयं को क्षमा करना और दूसरों के प्रति भी इसी भाव को रखना क्षमावाणी पर्व का महत्व है। जो पहले क्षमा मांगता है वह सबसे बहादुर हैं और जो सबसे पहले क्षमा करता है वह सबसे शक्तिशाली हैं। माफ़ी मांगने से कभी यह साबित नही होता कि हम गलत और वो सही हैं, माफ़ी का असली मतलब है कि हम में रिश्ते निभाने की काबलियत किसी अन्य की अपेक्षा ज्यादा हैं।

        जब आप माफ़ करते हैं तब आप भूत को नहीं बदलते हैं,लेकिन आप निश्चित रूप सेभविष्य को बदल देते हैं. क्षमा दंड से बड़ी है। दंड देता है मानव, किंतु क्षमा प्राप्त होती है देवता से। दंड में उल्लास है पर शांति नहीं और क्षमा में शांति भी है और आनंद भी। मानवता कभी इतनी सुन्दर नहीं होती जितना की जब वो क्षमा के लिए प्रार्थना करती है, या जब किसी को क्षमा करती है. बदला लेने के विचार से किसी दुश्मन को कष्ट पहुंचाते है तो सुकून कुछ दिन तक रहेगा। लेकिन अगर आप उसे माफ़ कर देते हैतो जिंदगी भर सुकून मिलेगा।‘एक आंख के लिए एक आंख‘ लेने वाले न्याय से तो एक दिन पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी। यही महावीर की जीव, दया और करुणा का सार है।

जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन


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