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धर्म-कर्म
Home›धर्म-कर्म›हिन्दू त्यौहार और शुभावसर पर लोग क्यों करते हैं भंडारा

हिन्दू त्यौहार और शुभावसर पर लोग क्यों करते हैं भंडारा

By पी.एम. जैन
December 10, 2018
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“इंसानियत और एकता का प्रतीक है भंड़ारा”-पी.एम.जैन

नई दिल्ली -: हिन्दू शास्त्रों के अनुसार धर्म के चार चरण कहे गये हैं जिनमें सत्य, तप, पवित्रता और दान प्रमुख हैं | सतयुग में तो धर्म के चारों चरण थे लेकिन त्रेतायुग में लगभग सत्य चला गया और द्वापर में सत्य और तप लगभग चले ही गये और आज के कलियगु में सत्य और तप के साथ-साथ पवित्रता भी चली गई है | कलियुग में केवल दान और दया ही धर्म रह गया है| इस काल के प्रभाव से कलिकाल में लोग धर्म के रूप में दान को बहुत महत्व देते हैं|

आमतौर पर लोग किसी शुभकार्य के अवसर जैसे- पूजा-पाठ, जागरण, हवन -यज्ञ या विवाह-शादी के बाद प्रीतिभोज या भंडारे का आयोजन करते हैं| धार्मिक कार्यक्रम के बाद लोग भंडारा करते हैं ताकि उन्हें उस धार्मिक आयोजन का पूर्ण पुण्य मिल सके! वैसे भी धर्म कोई भी हो, दान को सबसे ऊपर माना गया है| माना जाता है कि दान परोपकार का प्रतीक भी होता है और इससे व्यक्ति की जन्मकुण्डली से सम्बन्धित क्रूर ग्रह भी शाँत रहते हैं|

हिन्दू धर्म में ब्राह्मण और गरीबों को दान देना धर्म का अंग माना गया है| दान के अनेक रूप होते हैं जैसे- अन्नदान, वस्त्रदान,विद्यादान, अभयदान, धनदान, भूमिदान, रक्तदान, अंगदान इत्यादि हैं|

दान श्रँखला में किसी भी चीज का दान करने से दान दातार को पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को परलोक में वही चीज मिलेगी जिसका आपने दान किया होता है| दान में सबसे बड़ा दान अन्नदान माना जाता है इसलिए लोग सबसे ज्यादा भंडारा करवाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा अन्न का दान किया जा सके| भरत जी के भारत में तो कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहाँ पर 24 घंटे भंडारा चलता रहता है|

़अन्नदान के रूप में भंडारे की खासियत है कि यहाँ पर लोग जाति-पाति, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच से ऊपर उठकर एक साथ भोजन ग्रहण करते हैं अर्थात इंसानियत और एकता का प्रतीक है भंड़ारा| भंडारे में कोई भेदभाव नहीं होता है लेकिन कई बार मन में यह सवाल उठता है कि भंडारा कब शुरू हुआ होगा और इसके पीछे की कहानी क्या होगी?
इस प्रकार की जिज्ञासा समाधन के लिए भंडारे की शुरुआत के इतिहास पर दृष्टि ड़ालते हैं –

पौराणिक काल में राजा-महाराज जब किसी यज्ञ या अनुष्ठान का आयोजन करते/ करवाते थे तब वह अयोजन के अंत में अन्नदान और वस्त्रदान किया करते थे! वह अपनी प्रजा को बुलाते थे और उन्हें अन्न तथा वस्त्रदान दिया करते थे लेकिन समय के साथ-साथ अब अन्नदान की परम्परा भंडारे में परिवर्तित हो गई! और लोग खाना बनवाकर लोगों को बाँटने लगे! वहीं हिन्दू धर्म में दुनियाँ का सबसे बड़ा दान अन्नदान माना गया है| इसके पीछे की कुछ मान्यता है कि ब्रह्माण्ड़ अन्न से बना है, और अन्न से ही इसका पालन-पोषण हो रहा है| यदि इस पृथ्वी पर अन्न न हो तो मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है| अन्न हमारे शरीर और आत्मा दोनों को प्रसन्नता व संतुष्टि प्रदान करता है इसलिये सभी दानों में अन्नदान को सर्वोपरि माना गया है|

भंडारा क्यों किया जाता है इसके बारे में दो कथायें काफी प्रचलित हैं| पद्मपुराण के सृष्टिखंड में इससे संबन्धित एक कथा वर्णित है-
एक बार ऋृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच संवाद हो रहा था इस संवाद में ब्रह्मा जी ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी जीवन में जिस भी वस्तु का दान करता है उसे मृत्यु के बाद वही चीज परलोक में मिलती है तदुपराँत राजा श्वेत कठोर तपस्या करके परलोक चले जाते हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी भोजन का दान नहीं किया होता था इसलिये उन्हे ब्रह्मलोक में भोजन नहीं मिलता है|

वहीं दूसरी कथा पुराणों में मिलती है जिसके अनुसार एक बार भगवान भोले शंकर , ब्राह्मण का भेष धारण करके पृथ्वी पर विचरण करने पहुँच जाते हैं| पृथ्वीलोक पर पहुँचकर वह एक विधवा स्त्री से दान माँगते हैं, उस वक्त कंजूस विधवा उपले बना रही थी और वह महिला कहती है कि वह अभी दान नहीं दे सकती है क्योंकि वह गोबर के उपले बना रही है| जब भोलेबाबा हठ करते हैं! तो वह स्त्री गोबर उठाकर दे देती है लेकिन जब महिला मरकर परलोक पहुँचती है तो उसे खाने के लिए गोबर ही मिलता है | जब महिला खाने के रूप में मिलने वाले गोबर के विषय में पूछती है तो उसे जबाब मिला कि जो उसने दान में दिया था यह उसी का परिणाम है|

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