डीमापुर(नागालैण्ड)!!महावीर भवन में ससंघ विराजमान दिगम्बर जैन महान साध्वी परम पूज्य गणिनी आर्यिका शिरोमणि गुरूमाँ 105 विन्ध्यश्री माताजी* ने धर्म चर्चा के दौरान कहा कि तुम जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल भोगना पङेगा। जैसे बबूल के पेड़ को कितना भी सींचा जाए, उसमें आम के फल नहीं लग सकते हैं। बबूल के बीज बोकर आम के फल खाने की सोचना तुम्हारी भूल है; नादानी है। ऐसा ही पाप का बीज है। तुम जो बोओगे, उसकी फसल काटनी पङेगी। इसलिए बोते समय खयाल रखना। कहीं जहर के बीज मत बो लेना। जो बोया है, वही बङा होकर मिलेगा। और ध्यान रखना- एक बीज से फिर अनंत बीज लगते हैं। इसलिए सोच-समझकर बीज बोना।
उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि आज मनुष्य पुण्य के फल को तो चाहता है, मगर पुण्य करना नहीं चाहता। साथ ही पाप का फल भी नहीं चाहता लेकिन रात-दिन पाप करने में लगा रहता है। कोई पाप के बीज बोकर पुण्य की फसल कैसे काट सकता है! याद रखना- तुम पाप करके दुनिया की आँख में तो धूल झोंक सकते हो, पर परमात्मा की नजर से नहीं बच सकते।
उन्होंने कहा- दुनिया के कानून में कोई अपराधी सजा से बच जाए और निरपराधि फंस जाए, ऐसा होता भी है क्योंकि कहते हैं आज का कानून अंधा कानून है। लेकिन ध्यान रखना- कुदरत का कानून अंधा नहीं है। वहां तो मनुष्य जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। कुदरत का कानून ऐसा कानून है कि भले ही तुमने छिप कर कोई कृत्य किया हो, यहां तक कि मन में भी कोई भाव उत्पन्न होते हैं तो उसका परिणाम उसे मिलता है। कुदरत के कानून में कोई छल, बल, रिश्वत, आरज़ू और मिन्नत की कोई गुंजाइश नहीं होती।उन्होंने जोर देकर कहा कि कर्म किसी को भी नहीं छोङता। सामान्य व्यक्ति की बात तो दूर तीर्थंकर जैसी हैसीयत वाले भगवान् आदिनाथ के जीव को भी उनके कर्म ने नहीं छोड़ा। भगवान आदिनाथ के जीव ने कभी पूर्व पर्याय में किसी बैल के मुँह में कुछ देर के लिए मूसिका बांधी थी, उसका ऐसा अन्तराय कर्म बंधा कि छह महीने तक उन्हें आहार नहीं मिला। इसी तरह मनुष्य एक क्षण में जो कर्म बांधता है उसे अनेक जन्मों तक भोगने के लिए बाध्य होना पङता है। कर्म बांधते समय मनुष्य यह नहीं समझता पर जब उसका परिणाम सामने आता है तब वह पछताता है। अंत में पूज्य गुरू माँ ने कहा कि एक-एक कृत्य सोचकर करना; एक-एक कृत्य ध्यान पूर्वक करना, नहीं तो बहुत पछताओगे जैसा बोओगे वैसा ही काटना पङेगा। यह विधि का विधान है, इसे कोई नहीं टाल सकता। अतः कृत्य करने के पहले उसके परिणाम का विचार कर लेना । अशुभ से बचना, शुभ ही शुभ करना, जीवन का कल्याण हो जाएगा। ध्यान रखना-मनुष्य जैसी प्रवृत्ति करता है, वैसा ही उसका जीवन बनता है। *उक्त समस्त जानकारी(संयोजक:-प्रदीप *कुमार झांझरी)*सुशील कुमार* *पहाङिया,( मंत्री प्रचार-प्रसार) ने दी ।
राष्ट्रीय संवाद दाता👉पारस जैन “पार्श्वमणि “,पत्रकार कोटा (राज)