{शब्द नहीं भाव का जादू : आचार्य विरागसागर}
शब्द नहीं भाव का जादू : आचार्य विरागसागर
मूर्ति में मूर्तिमान, आत्मा में परमात्मा देखने वाले की श्रद्धा सही है। अन्यथा लोग मूर्ति पकड़ते हंै पर विश्वास नहीं जमा पाते। शब्द अक्षर मात्रा की नहीं भगवान की वाणी पूज्यनीय है। ज्ञान की कीमत करें तो प्रगति होगी। सीमा में बंधने का अर्थ कूपमण्डूक न्याय है। प्रेम का नीरस भोजन भी सरस है अन्यथा सरस भी नीरस तुल्य है। कुएं से बाहर निकलें, जिनवाणी से बंधें, संस्था से नहीं। धर्मकथा सुनें तो सार्थक हुआ जीवन। राष्ट्रसंत गाणाचार्य श्री विरागसागर मुनिमहाराज ने धर्मीजनों को समझाया – कि स्कूल खोलें पर विद्यार्थियों के लिए संस्कार का दान भी करें तो सार्थक है। नयी पीढ़ी के हिसाब से शिक्षक नये नये तरीके, नये विषय सिखाएं तो छात्र भी अच्छे निकलेंगे, जो देश की तकदीर व तदबीर हैं। बुझे दीपकों को जलाकर देखो, अरहन्त वाणी से जुड़ो तो प्रकाशित होगे व संसार को प्रकाशित कर लोगे। मायूस होना छोड़कर उत्साह शक्ति से काम लो तो संसार आपसे जुड़ सकता है। आप सुधार की इकाई हो अतः दृष्टि दोषों पर नहीं गुणों पर रखो तो जीवन में उन्नति आपके कदम पूजेगी, सफलता द्वार खटखटाएगी और आपकी उपलब्धि आपको नितप्रति महकाएगी।
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर 9826091247