जन्मकुण्डली एवं वास्तु में सन्तान उत्पति में बाधक योग क्या है


सन्तान बाधा योग-
👉1-जब पंचेमश नीच का होकर त्रिकभाव 6,8,12 स्थत्ति हो।
👉2- कारक ग्रह गुरु निर्बल होकर त्रिकभाव मे स्थित हो।
👉3- पंचम भाव के नीच ग्रह स्थित हो।
👉4- पंचम भाव मे राहु केतु स्थित हो और शत्रु राशि गत हो।

👉6- जब पंचम भाव और एकादश भाव मे विष योग बनता हो।
👉7- पंचम भाव मे निर्बल चद्रं नीच या अमवासिया का चद्रं पाप ग्रहों से पीड़ित हो या पाप कर्तरी दोष में हो तो भी सन्तान सुख में बाधा आती है।
👉8- शादी के समय गुण मिलान में नाड़ी दोष होना और भी सन्तान सुख में बाधा देता है।
👉9- कुण्डली गुण मिलान पूर्ण तय नहीं होने पर भी सन्तान बाधा होती है।
👉10- पंचमेश निर्बल हो या पंचम भाव पर निर्बल ग्रह जो शत्रु राशिगत हो वक्री या अस्त हो तब भी सन्तान सुख में बाधा आती है।
👉11-कुण्डली में पंचम या 11th हाउस में कर्क राशि सिंह राशि में मंगल ,सूर्य , शनि राहु या केतु की युति हो तब भी सन्तान सुख में बाधा आती है।
👉वास्तु अनुसार भी सन्तान उत्पति में बाधा के कारण-👇

👉वास्तु उपाय-👇
👉हाथी फर्टिलिटी का कारक है। जो भी दंपत्ति संतान प्राप्ति के इच्छुक हैं उन्हें हाथी का चित्र अपने बेडरूम में लगाना चाहिए।
👉कमरे में फल इत्यादि रखें मुख्यतः अनार और जौ की फ़र्टिलिटी का कारक है।
👉पत्नी को पति की बायीं दिशा में सोना चाहिए।
👉ध्यान रहे पति-पत्नी का बिस्तार छत की बीम के नीचे नहीं होना चाहिए।
👉नवदंपत्ति जो नया परिवार शुरू करना चाहते हैं उनके लिए वायव्या (NW)कमरा आदर्श स्थान है। पर गर्भाधन के बाद दम्पत्ति को दक्षिण / दक्षिण-पश्चिम भाग के शयन कक्ष में चला जाना चाहिए ताकी गर्भ सुरक्षित रहें।
