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Home›धर्म-कर्म›स्वयं पर स्वयं के नियंत्रण का नाम है संयम

स्वयं पर स्वयं के नियंत्रण का नाम है संयम

By पी.एम. जैन
September 14, 2021
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स्वयं पर स्वयं के नियंत्रण का नाम है संयम
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर,
संयमका मतलब है स्वयं का स्वयं पर नियंत्रण। इस स्वयं के अन्तर्गत सम् का अर्थ सम्यक् प्रकार और यम का अर्थ है पाप क्रियाओं से उपरम वा विरक्त होना, इस प्रकार समस्त पाप क्रियाओं से विरक्त रहना संयम है। ‘संयमनं’- संयम सब तरफ से सीमित हो जाना। संयम सभी धर्मों की आधारशिला है। संयम शांति का मार्ग है, असंयम अशांति का मार्ग है। संयम सुगति का मार्ग है, असंयम दुर्गति का मार्ग है।

स्वयं का स्वयं पर नियंत्रण अर्थात् पांचों इन्द्रिय-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण तथा छठवें मन पर निग्रह अर्थात् वश में रखना, उन पर नियन्त्रण रखना सो संयम धर्म है। स्पर्शन अर्थात् शरीर-सुख हेतु किन्हीं अनैतिक विषय वासनाओं में नहीं पड़ना, रसना- सुस्वादु वस्तुओं के प्रति लालायित नहीं होना, घ्राण- सुगन्धित तेल, फुलेल, सैन्ट आदि में ग्रद्धता नहीं करना, चक्षु- फूहड़ नृत्य देखने, मादक, मन को भटकाने वाले, विषयों का संवर्द्धन करने वाले चलचित्रों आदि को नहीं देखना, श्रोतृ- कानों को प्रिय लगने वाले गीत-संगीत को नहीं सुनना और मन-पहले जो विषय भोग भोग चुके उनका स्मरण नहीं करना, पर-अहितकर कार्यों और स्वयं के स्वार्थ की ओर मन को नहीं लगाना, मन की चंचलता को रोकना सो मन निग्रह है। नीतिकारों ने तो यहां तक कहा है कि यदि पांच इन्द्रियों में से किसी एक इन्द्रिय में भी विकार हो जाय तो उस मनुष्य की बुद्धि, बल, शक्ति भी क्षीण हो जाती है। जैसे एक छोटा छिद्र होने पर भी कलश में से पानी निकल जाता है। वेसे ही एक इन्द्रिय भी यदि सछिद्र है, देाष युक्त है तो ज्ञान-चारित्रादि गुण भी निकल जाते हैं।
एक एक इन्द्रिय के विषयों के उदाहरण हमें प्राप्त होते हैं। भौंरा सुगंध लेने के लिए कमल के फूल में बैठ जाता है, उसकी खुशबू लेने में वह इतना मग्न हो जाता है कि संध्या हो जाती है, फूल मुकुलित-बंद हो जाता है तो भी वह नहीं भागता। भौंरा सोचता है इतने सुन्दर फूल को काटकर बाहर क्यों निकलूं, सबेरा होगा, फूल पुनः खिलेगा और मैं उड़ जाऊँगा। वह भौंरा यह सोच ही रहा था कि कही से हाथी आया, उसने उस फूल के तने सहित पानी की घास को अपनी सूंड़ में समेट कर खा लिया।  भौरे का अंत हो गया। घ्राण इन्द्रिय-खुशबू के विषय के कारण उसकी जान जाती है। हाथी को भी पकड़ कर उसे मारकर हाथी दांत आदि की तस्करी करने वाले लोग जंगल में गड्ढा खोदकर ढॅंक देते थे, फिर मदमत्त कथिनी को जंगल में लेजाकर हाथियों को उससे आकर्षित करवाते हुए गड्ढे के पास ले आते थे। हाथी गड्ढे में गिरा कि उसे मार देते थे। इस तरह स्पर्शन-शरीर सुख की लोलुपता में हाथी जान गंवा देते थे। शीत ऋतु में लैंप, हैलोजिन आदि जलाई जाती हैं, वे जितनी तेज रोश्नी करतीं हैं उतनी ही गर्म भी होती हैं, उनकी रोशनी से आकर्षित होकर कीट-फतिंगे आकर सीधे रोशनी पर ही गिरते और जलभुन कर उनका प्राणान्त हो जाता। सबेरे सफाई कर्मी टोकनियां भर भर कर स्ट्रीट लाइट के नीचे से इन मरे हुए फतिंगों को फेकते हैं। कहते हैं हिरण को संगीत बहुत पसंद होता है। उसे पकड़ने के लिए संगीत बजाया जाता था और पकड़ लिया जाता था। मछली को पकड़ने के लिए तो सब जानते हैं कि एक रस्सी में बंधे दोमुंहे कांटे में आटे की गोली या अन्य कुछ वस्तु (चारा) फंसाकर पानी में डालकर मछली को ललचाया जाता है, मछली ज्यों ही रसना इंद्रिय के वशीभूत होकर उस चारे को मुंह में दबाती कि दोमंुहे कांटे में फंस जाती, ज्यों ज्यों वह खिंचती है त्यों त्यों उसमें और अधिक फंसती जाती है और अपनी जांन गवां देती है।
इस तरह एक एक इन्द्रिय के विषयों के उदाहरण हमें प्राप्त होते हैं अतः पांचों इन्द्रिय और मन को नियन्त्रण में करने को संयम धर्म कहा गया है।
जैनाचार्यों ने कहा है-
पंचहु नायकु वस करहु, जेण होहिं वसि अण्ण।
मूल विणट्ठहि तरुवरहि, अवसहिं सुक्खहिं पण्ण।।
अर्थात् मन को वश में करलो तो स्पर्शन, रसना आदि पांचों इन्द्रियां अपने आप वश में हो जायेंगीं, क्योंकि पांचों इन्द्रियों का नायक-नेता तो मन ही है। जैसे पेड़ की जड़ को नष्ट कर देने से पत्ते डालियां अपने आप अवश्य सूख जायेंगे।
व्यवहार में हम अक्सर देखने में आता है अमुक नेता ने वाणी संयम खो दिया, कुछ उल्टा -सुल्टा बोल दिया। हमें पग-पग पर सजग रहने की, संयमित रहने की आवश्यकता है। तभी हम उत्कृष्टता के शिखर तक पहुंच सकेंगे।
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’,
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर 9826091247

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