मुंगेरीलाल के सपने देखने वाले वो कुछ भरे पेट और खाली दिमाग वालों का TIME PASS सम्मेलन था। उनमें से एक बोला –मैं बरसों से जज साहब का स्टेनो रहा हूं जज बनने की पूरी योग्यता है मुझे जज बनना है । उसकी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि पास में बैठा व्यक्ति बोला मैं तो कलेक्टर साहब का दो दशक से पर्सनल सेक्रेटरी रहा हूं प्रशासन के सभी दाव-पेंच से वाकिफ हूँ। मुझे कलेक्टर न बनाना मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है। देखा-देखी एक और सज्जन उठे और बोले कि मैं विश्व की 9 भाषाएं जानता हूं, सारी दुनिया घूम चुका हूँ। मुझे भारतीय विदेश सेवा में नियुक्ति न देना अन्याय है।
अचानक एक आवाज गूंजी –आपने अपनी सारी योग्यताएं तो बता दीं। लेकिन क्या आपने न्यायिक सेवा अथवा प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगात्मक परीक्षा पास की है। क्योंकि यह सब नियुक्तियां उस परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही हो सकती हैं। कहने को यह काल्पनिक कथा है। लेकिन हमारे धार्मिक क्षेत्र में इसका वास्तव में रूपांतर हो रहा है। मुनिराज की परछाई बने नामधारी प्रत्याशी की जिद -कि हम वर्षों से मुनि-सेवा में लगे हुए हैं, हमें सम्यक-दृष्टि उपाधि से नवाजा जाए, उनके समकक्ष ही सम्मान मिले। हर तीसरे, दूसरे दिन लाल, हरी, पीली, और रोज न खाई जाने वाली अखाद्य वस्तुओं में से किसी एक का एक दिन के लिए त्याग करने वालों ने दावा किया कि वह सर्वश्रेष्ठ संयमी हैं। छापेखाने से जुड़े एक सज्जन ने कहा हमें हर क्षेत्र की सूचनाओं का ज्ञान है, हमें ज्ञानी, विद्वान कहा जाए। धन के बिना धर्म का प्रसार-प्रचार और प्रभावना संभव ही नहीं, धन है तो मेरे साथ जनबल भी है। यह दलील देते हुए वैभव की प्रतिमूर्ति बोले मेरा येन-केन-प्रकारेण अर्जित विपुल धन धर्म-पताका को गगन तक फहराने की सामर्थ्य रखता है। अतएव सभी संस्थाओं के पदों को मेरी जरूरत है।
आकांक्षाओं, सपनों और अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का निर्वचन हो ही रहा था कि फिर आकाशवाणी हुई। -तुमने अपनी सारी विशेषताओं को परिपूर्ण मान कर अपने-अपने विशिष्ट आसनों का चयन भी कर लिया। लेकिन एक बात बताओ क्या इन सब बाहरी क्रियाओं को सतत और निरंतर करते हुए तुम्हें आत्मानुभव हुआ? अपनी श्रद्धा को विवेक की तुला पर तौला? सूचनाओं और पदों के शब्द-विच्छेदन, सोशल मीडिया पर कापी-पेस्ट को ही ज्ञान का पर्याय माना। ऐसा ज्ञान भी, ज्ञान ही रहा या किंचित मात्र भी आचरण में उतारा? मान-मर्दन किया? आराधना-अर्चना के नाम पर इष्टदेव के सामने लिखा हुआ पढ़ते रहे, ह्रदय के कोई भाव भी अधरों तक आए ? श्रद्धा को तिलांजलि देकर, कानफोड़ संगीत की सुर-ताल पर श्रद्धा-रस में डूब मिथ्यानुकरण में मगन वीतरागी को रिझाते रहे। पद के पीछे अंगद के पैर की तरह जम कर अपना चेहरा चमकाना है या समाज को सुदृढ़ करने की भी सोच है। अपनी अंतरात्मा को साक्षी मान सब का सच-सच हाँ या न में उत्तर दो।
इतना सुनते ही सबके सपने बिखर गए। सन्नाटा छा गया। किसी का कोई उत्तर नहीं। मायावी आवाज ने फिर कहा- तुम्हारी चुप्पी तुम्हारी सत्यता को उजागर कर रही है। अर्थात तुम्हारी शारीरिक क्रियाओं ने तो धर्म का आडंबर रचा। लेकिन उनके साथ तुममें से किसी एक का भी मन उनसे नहीं जुड़ा। न्यूनाधिक बाह्य उपकरण तो त्यागे। लेकिन अंतर में भक्ति और अध्यात्म की, श्रद्धा की, त्याग की, तप की ज्योति जागृत नहीं की। जबकि धर्म आराधना, अर्चना, भक्ति यह सब भावनाओं पर ही आधारित हैं। जैसे प्रशासनिक पद के लिए PCS, UPSC, PCS(J), HJS जैसी ENTRANCE परीक्षा पास करनी होती हैं, वैसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक आसनों पर पदारूढ़ होने के लिए सांसारिक परिग्रह के त्याग के साथ अपने अंतर में डेरा जमाये बैठे काम, क्रोध, मान, लोभ, मोह, हिंसा आदि के कूड़े कचरे का भी निस्तारण ज्ञानी-ध्यानी-त्यागी वृत्ति बनने की ENTRANCE परीक्षा है। बिना इसे पास किए अपने को किसी लायक समझना या दिखाना भ्रम में जीना है।