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Home›लेख-विचार›मधुर बोलने में कैसी कंजूसी-डॉ. निर्मल जैन (जज)

मधुर बोलने में कैसी कंजूसी-डॉ. निर्मल जैन (जज)

By पी.एम. जैन
January 5, 2022
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हमारा व्यक्तित्व एक बहुत बड़े प्रतिष्ठान की तरह है। हमारे अधर उस प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार हैं और वाणी उस द्वार पर लगा हुआ ताला है। द्वार और ताला खुलते ही अधरों से जो वाणी बाहर आती है तब पता चलता है कि हमारे व्यक्तित्व के शोरूम में स्वर्ण का भंडारण है अथवा कोयले का। वाणी ही हमारे व्यक्तित्व का परिचय कराती है। शब्द वही सुनने लायक हैं जो हमें मौन में ले जाए। जिसकी संगति में हम मौन हो सकें, वो हमारा दोस्त है और जिससे मिलकर हम अशांत हो जायें, वो हमारा दुश्मन है। जिस  गीत को सुन कर बिल्कुल स्थिर हो जायें, वो गीत हितकर है हमारे लिए। जो गीत-संगीत हमें उत्तेजित कर दे, ऐसा मनोरंजन भी हमारे लिये ज़हर है।👉अस्पष्ट बोलना, कठोर वचन बोलना, झूठ बोलना और व्यर्थ बकवास करना -वाणी के ये चार दोष हैं। सज्जन पुरुषों को इन दोषों से यथासंभव दूर रहने का प्रयास करना चाहिए। जीवन को सरल और सहज बनाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति बनावटीपन से दूर रहे और मर्यादित जीवन जीए। इसके लिए कठोर भाषा का त्याग करना होगा और कोमल तथा मधुर भाव को ग्रहण करना होगा।- मनु स्मृति👉वाणी में, ह्रदय में, लेखनी में और व्यवहार में सरलता ये सब गुण हमारे जीवन मे सफलता और सहजता दोनो लाते हैं। शब्दों का वजन बोलने वाले ऊपर आधारित है ।एक शब्द मन्त्र हो जाता है, एक शब्द गाली कहलाता है। वाणी में अजीब शक्ति होती है। कड़वा बोलने वाले का शहद भी नही बिकता और मीठा बोलने वाले का कड़ुवा चिरायता भी बिक जाता है। शब्द उस चाबी की तरह होते हैं  जिनका सही इस्तेमाल करके कई लोगों के मुँह बंद और दिल के ताले खोले जा सकते हैं। शब्द सुकून भी देते हैं और जला भी देते हैं ।

कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में लिखा है कि -मनुष्य की उन्नति और विनाश का एक मुख्य कारण उसकी वाणी भी होती है। अच्छी वाणी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है, जबकि खराब वाणी मानव को पतन की ओर ले जाती है। हमारी वाणी में अमृत का कोश भी होता है और विष का महाकोश भी। कोई व्यक्ति इनमें से कब किस कोश का प्रयोग करता है, यह उसके विवेक और संस्कारों पर निर्भर करता है। मधुर वचन बोलना दान के समान है । इससे सभी मनुष्यों को आनन्द मिलता है । अतः मधुर ही बोलना चाहिए । मधुर बोलने में कैसी गरीबी।

अधिकांश समस्याओं की शुरुआत वाणी की अशिष्टता और अभद्रता से ही होती है। इसलिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हमें वाणी की मधुरता का दामन नहीं छोडऩा चाहिए। मीठी वाणी व्यक्तित्व की विशिष्टता की परिचायक है। मीठी वाणी जीवन के सौंदर्य को निखार देती है और व्यक्तित्व की अनेक कमियों को छिपा देती है। किंतु हमें इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि अपने स्वार्थ के लिए हमें चाटुकारिता या दूसरों को ठगने के लिए मीठी वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।👉 बोलना और प्रतिक्रिया करना ज़रूरी है लेकिन संयम और सभ्यता का दामन नहीं छूटना चाहिये। न शत्रु, न शस्त्र, ना दारुण रोग, ना विष ही मनुष्य को उतना संतप्त करते हैं जितनी कड़वी वाणी। -नीति वचन   👉चाटुकारों के बीच इक-दूजे को बड़ा कहने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। स्वयं के ज्ञानी होने के दंभ में हमें किसी को अल्पज्ञानी कह कर उपहास नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार जहरीले कांटों वाली लता से लिपटा होने पर उपयोगी वृक्ष का कोई आश्रय नहीं लेता, उसी प्रकार दूसरों का उपहास करने और दुर्वचन बोलने वाले को कोई सम्मान नहीं देता। हम जिन शब्दों का उच्चारण करते हैं, उनकी गूंज वातावरण के द्वारा सामने वाले व्यक्तियों  के दिमाग में समा जाती है। हम मृदु वचन बोलेंगे तो तो हम सब के प्रिय भी बनेंगे और इनका प्रभाव सभी पर भी  अच्छा पड़ेगा।  

जज (से.नि.) डॉ. निर्मल जैन

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