आचार्य श्री अतिवीर मुनिराज के सानिध्य में रानी बाग दिल्ली में चढ़ाया गया निर्वाण लाडू
दिल्ली-प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शांतिसागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी रानी बाग स्थित श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में 16वें मंगलमय चातुर्मास के अनन्तर दिनांक 22 अगस्त 2021 को श्री श्रेयांसनाथ निर्वाण कल्याणक महोत्सव व रक्षाबंधन पर्व का आयोजन सानंद संपन्न हुआ| प्रातः काल जिनाभिषेक व शांतिधारा के पश्चात् नित्य नियम पूजन में सम्मिलित होकर सभी ने पुण्यार्जन किया| तत्पश्चात निर्वाण काण्ड वाचन के साथ महिलाओं द्वारा मुख्य निर्वाण लाडू चढ़ाया गया तथा 11 सौभाग्यशाली महानुभावों ने श्रीजी के चरणों में विशेष निर्वाण लाडू समर्पित किए|
धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि सम्यक्दर्शन के वात्सल्य अंग की चर्चा करते हैं तो आज की कथा का उल्लेख अवश्य होता है| श्री अकम्पनाचार्य जी ने उपसर्ग की घडी में किसी भी साधु को अपनी चर्या से विमुख होकर आग के घेरे से निकलने का आदेश नहीं दिया| सभी मुनिराज सतत अपनी साधना में संलग्न रहे और नश्वर काया की चिंता किये बिना बस आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर रहे| श्री अकम्पनाचार्य जी ने यह सन्देश दे दिया कि हमें सिर्फ अपने परिणामों को संभालना है, किसी अन्य का हम कुछ अच्छा/बुरा नहीं कर सकते| परन्तु यह कैसी विडंबना है? 700 मुनिराजों की रक्षा हेतु श्री विष्णु कुमार मुनि ने अपने मुनि पद का त्याग कर दिया, एक जीव को दूसरे जीव का कर्ता बता दिया| शायद हम लोगों से इस कथा को समझने में कोई गलती हुई है, जैन दर्शन का मूलभूत सिद्धांत ही कही लुप्त दिखाई पड रहा है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि श्रावकों के लिए साधुओं व साधर्मी की रक्षा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है| वर्तमान में यदि किसी साधु पर कोई संकट आ जाए तो कोई भी व्यक्ति उसके निवारण के लिए आगे नहीं आता| परन्तु चर्या में कोई कमी हो तो हजारों लोग टोकने के लिए खड़े हो जाते हैं| रक्षाबंधन पर्व मनाने की सार्थकता तभी होगी जब सभी लोग अपने साधर्मीजनों की रक्षा का संकल्प लेंगे तथा हर परिस्थिति में साथ रहने का दृद निश्चय मन में कर लेंगे| वर्तमान में कुछ ऐसी व्यवस्था बन गयी है कि भक्तजन मुनियों की पिच्छिका पर राखी बांधने लगे और-तो-और भगवन को भी नहीं बक्शा| यह सभी क्रियाएं निराधार हैं तथा मिथ्यात्व-पोषक है|
वात्सल्य का अर्थ काफी विस्तृत है| आज हर तरफ हिंसा का तांडव चल रहा है| जगह जगह आधुनिक बूचडखाने खुलते जा रहे हैं| शायद हमने वात्सल्य को केवल इंसानों तक ही सीमित कर दिया है| परन्तु वात्सल्य तो प्राणी-मात्र के प्रति होना चाहिए| जैन समाज के समक्ष आज एक और चुनौती खड़ी है| हमारे पावन तीर्थ आज धीरे धीरे हमारे हाथों से छूट रहे हैं| परन्तु अफ़सोस हमारी जैन समाज निष्क्रिय होकर हाथ पर हाथ रखे बैठी है| अहिंसा का चोला ओढ़कर हम लोग धीरे-धीरे कायर बन गए| रक्षाबंधन का यह पर्व हमें तीर्थ संरक्षण के लिए भी प्रेरित करता है|