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Home›प्रवचन›पंथवाद की ओढ़नी चादर से बाहर झाँके जैन समाज

पंथवाद की ओढ़नी चादर से बाहर झाँके जैन समाज

By पी.एम. जैन
February 5, 2020
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ध्यान रखना👉 फिरंगियों से आजाद हुए तो 70 साल हो गए लेकिन आज दुरंगियों की गिरफ्त में हैं – आचार्य श्री
नई दिल्ली- 21 वीं सदी के वात्सल्यमूर्ति आचार्य 108 श्री ज्ञानभूषण जी महाराज ने “पारस पुँज” से चर्चा करते हुए कहा कि👉 आज जैन समाज द्वारा संचालित संस्थाओं ,मंदिर कमेटियों और साधु एवं श्रावक समाज दोनों के गणमान्यों सहित समस्त जैन समाज को विशेष ध्यान देना चाहिए कि अब हमें पंथवाद की जड़ों से जकड़ कर रहने का वक्त नहीं है|
देश-विदेश में जैनधर्म की धर्म पताका फहरा कर प्रभावना करने वालों का केवल एक ही मकसद होना चाहिए कि किसी भी रूप से सही, किसी भी परम्परा द्वारा ही सही लेकिन जैनधर्म की ध्वजा के तले विश्व में जैनधर्म की प्रभावना सदैव होती रहनी चाहिए क्योंकि यह धर्म प्रभावना भी समाज के लिए मोक्ष का कारक बनती है| चाहे वह समाज 13पंथ या 20पंथ आदि जैसे किसी भी जैनसिद्धाँत से जुड़ा हो,कम से कम धर्म प्रभवाना करके मोक्ष की प्रथम सीढी़ पर अपना पैर तो जमा रहा है|
आगे आचार्य भगवन कहते हैं कि👉यह पंथवाद पतन का मुख्य कारण है, जिसे अधिकाँश लोग द्वेषभाव के माध्यम से अपने अंदर पनपाते हैं और अदृश्यता से उसका पोषण भी करते हैं लेकिन बाहर से धर्मात्मा होने का ढ़िंढ़ोरा पीटते हैं| जरा विचार कीजिए👉कि द्वेषभाव से परिपूर्ण यह पंथवाद का जहर जीव के उत्थान में कैसे सहायक सिद्ध हो सकता है? कदापि नहीं!
👉विश्व व्यवस्था और सामाजिक संख्या का आंकलन करते हुए अब वक़्त आ चुका है कि जैन समाज को पंथवाद की ओढ़ी हुई चादर से बाहर झाँकना चाहिए|आज के दौर में समाज को पंथवाद के कट्टरपंथियों  को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि धार्मिक क्षेत्र हो या सामाजिक क्षेत्र, व्यक्ति का रंचमात्र का “द्वेषभाव” दुर्गति का पात्र ही बनता है|
👉उदाहरण प्रस्तुत तौर पर आगे आचार्य श्री ने कहा कि जिसने दिल्ली जाने का पक्का लक्ष्य बना ही लिया है तो वह परधान पहनकर दिल्ली जाऐ या दिगम्बर अवस्था में लेकिन भिन्न-भिन्न रास्तों से होता हुआ पहुँचेगा वह दिल्ली ही ,अब यह बात दूसरी है कि कोई वाहन प्रयोग करके दिल्ली पहुँचे या पैदल की पगडंडी से दिल्ली पहुँचे लेकिन वह पहुँचेगा अपने निर्धारित लक्ष्य दिल्ली पर ही | उसी भाँति जिसने मोक्षलक्ष्मी प्राप्ति का लक्ष्य बना ही लिया है वह चाहे किसी भी रास्ता-परम्परा से पहुँचे लेकिन अपने लक्ष्य पर पहुँचेगा जरूर वह बात दूसरी है कौन सा रास्ता दीर्घ है और कौनसा रास्ता लघु है यह उस व्यक्ति की मानसिकता और आस्था पर निर्भर करता है|
आगे आचार्य भगवन ने कहा👉मुझे आश्चर्य तब होता है जब अहिंसामयी जैनधर्म के कुछ अनुयायी समाज को पंथवाद के नाम पर भ्रमित करते हैं और उनका सूक्ष्म रूप से पाप बंध करवाते हैं| जिस विश्व विख्यात जैनधर्म में एक व्यक्ति की वाणी से दूसरे के लिए निकले दुखदायक वचनों को भी “वचनहिंसा” की श्रेणी में रखा जाता हो उस विश्वमयी जैनधर्म में “पंथवाद” का जहर आश्चर्यजनक है|
👉आज देश की समाज के समक्ष मैं एक विचारणीय विषय रखता हूँ कि धार्मिक क्षेत्र में जब हम “ऊँ” जैसे बीजाक्षर मंत्रों एवं णमोकार जैसे महामंत्र, धर्म ध्वजा का गुणगान करने में मन-मष्तिक से एक साथ हैं और व्यक्तिगत रूप से नाम के पीछे अपना सरनेम “जैन” लगने पर हम सब एक मत है तो फिर परम्पराओं पर “मनभेद” भी नहीं होना चाहिए?
👉ध्यान रखना हमें फिरंगियों से आजाद हुए तो 70 साल हो गए लेकिन समाज में फैले कुछ दुरंगियों की गिरफ्त में हम आज भी हैं जिनसे हमें बहार निकलना होगा और दुनिया को एकजुटता का परिचय देना होगा| इसी श्रँखला में👉 गायक रविन्द्र जैन की पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए आचार्य भगवन बोले 👉”ना कोई दिगम्बर ना कोई श्वेतांबर ना कोई स्थानकवासी हम सब जैनी हमारा धर्म जैन हम सब एक धर्म के अनुयायी”
👉आज का मानव कितना निजी स्वार्थ में डूबता जा रहा है कि उसने धार्मिक परम्पराओं को, तो पंथवाद के खूटे से बाँध रखा है लेकिन पुत्र-पुत्री की शादी जैसे प्रकरण पर पंथवाद को स्वतन्त्र कर दिया है आज निजी स्वार्थ के लिए मंदिर परम्परा की पुत्री स्थानक परम्परा के जोड़े में बाँध रहे हैं! लेकिन पंथवाद के नाम पर अपनी नेतागिरी चमकाना नहीं छोड़ते हैं|
👉देशहित-समाजहित और जनहित में संदेश देते हुए आचार्य भगवन ने कहा कि👉किसी को प्रासुक जल से भगवान का अभिषेक करना अच्छा लगता है, किसी को पंचामृत से अच्छा लगता है तो किसी को श्रंगार करने के उपराँत भगवान अच्छे लगते हैं, किसी को भगवान आँखें निहार कर अच्छे लगते हैं तो किसी को आँखें मूँदकर भगवान अच्छे लगते हैं, तो लगने दें आखिरकार भगवान सब को लगते तो अच्छे ही हैं बुरे तो नहीं लगते, बुरे तो हम लोग लगते हैं जब एक ही धर्म के अनुयायी होते हुए मतभेद के चलते मनभेद पर उतारू हो जाते हैं!  ज्ञानियों !! यह सब अपनी-अपनी अस्था और मानसिकता का विषय है! यही तो भरत जी के भारत की स्वच्छ तस्वीर है लेकिन हमें किसी की आस्था पर अपनी मानसिकता नहीं थोपनी चाहिए क्योंकि दुनिया में थोपनापन ही थोथापन और छोटापन दर्शाता है|
👉मीडिया पर चर्चा करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि देश में आज मीड़िया भी दुरंगी हो चुकी है जिसमें कुछ जैन मीडिया की गतिविधियाँ अपना दुरंगापन दिखा रही है और ऐसी दुरंगी मीड़िया की चपेट में समस्त समाज झुलसने की कगार पर है जिस मीड़िया को निष्पक्ष बात करनी चाहिए वह भी कुछ चंद द्रव्य के लिए पंथवाद की आग को प्राथमिकता दे रहा है जोकि देश व समाज के लिए अत्यन्त विचारणीय विषय है|
प्रेषक👉 पी.एम.जैन “चीफ एडिटर” पारस पुँज न्यूज नई दिल्ली
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